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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५५८

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ग्रहयुत्यधिकारः ५१ घ क = ९०१"t=ओ (), "==, र जमण गणित है। -- से ()+, '(K)-- इन दोनों के प्रमाणात पूरी हित . न्याय के बराबर है या {+(¢ -*)} उज्याग x४व्या { को (K +प )} =ळ्याग.त्याच पूर्व युक्ति से कोज्या (म) -ज्या-ज्यागज्याघ . ज्या को ज्या |-ज्याय कोज्या भ यह भाज्यमान बरावर है इसलिये जिसका हर ज्यादा होगा वह फल अल्प होगा फलत: परमापकएँ और परमाषिक कणों से उत्पन्न कोण सर्वाधिक सिद्ध हुआ . इति ॥ परम कोण बिन्दु से दोनों तरफ अवश्य हो परमाल्पकर्ण और परमाधिकरों से उत्पन्न कोण के बराबर कोणद्वय होता है, तया समीकरण से ता भ-ज्याय ज्या' --घ - ग+= ई श्याग. ज्याध कोड्या अ २ ब्याग, न्याष=कोषा' - अ-उयापूतथा ब्धा स-ज्याप = -------- वैदम से झोज्य'