पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५५

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३८ ४ल=ो इसको चक्रश (३६०) से गुणकर कल्प वर्ष से भाग देना तब फल । रविमन्दोच प्रमाण = ७८ :(१€७२६४१०३२xय–४३२००००००० xल) X ३६० ४३२००००००० =७८° छेदगम से (१६७२e४१०३२४य-४३२०००००००४ ल) ४३६ =:४३२०००००००४७८- दोनों पक्षों को ३६० इस से भाग देने से ४३२०० ० ० ० ० ० ४७८ १६७ &४१०३२४य~~४३२००००००० + ल = १२००००० ३६ ००४७८=&३६०० ०००० दोनों पक्षों में समान जोड़ने से १६७२e४१०३२४यः = १६७२७४१०३२Kय-६३ ६०००००० ४३२०००००००४ ल+&३६०००००० ४३२००००००० आठ से भाग देने से २४६६१८६२&X य -११७०००००० =ल, यहां ५५६७०१ इन ५४० ० ० ० ० ० ० ४४३य–२१ से अपवर्तन देने से =ल (स्वल्पान्तर से) ऋणात्मक रूपक्षेप में लब्धि ६७० और गुण लाकर ‘अभीप्सितक्षेपविशुद्धिनिघ्नौ' ( इत्यादि से लब्धि=२१e, गुणक =४८० ते भाज्यतदुभाजकवर्णमानेइस भास्करोक्ति से गुणक ही भाज्यवर्ण (य) का मान होता है इसलिए य८४८०=कल्परविमन्दोच भगण । चन्द्रमन्दोच्चोपपति दो तरह के मन्द और शीघ्र भेद से मन्दोच और शीघ्रोच होता है । शीघ्रायतुङ्गस्य तयोरभावात्इत्यादि भास्करोक्ति से रवि और चन्द्र का केवल मन्दोच्च ही होता है । चन्द्रबिम्ब कला की प२ माल्पता चन्द्रमन्दोच्च स्थान में होती है। वहां उस समय में जितने वेधगत स्पष्ट चन्द्र होते हैं उतने ही चन्द्रमन्दोच होते हैं । परमाल्पचन्द्रबिम्बकलाप्रमाण को मापन कर समझ लेना चाहिए इसके लिए भूगर्भ और भूपृष्ठ को प्रभेद मानना । पड़ेगा, द्वितीय पर्यय में भी पूवोंक्त युक्ति से चन्द्रमन्दोच जानकर दोनों चन्द्रमन्दोच के अन्तर करने से वेधकालान्तर दिन सम्बन्धी चन्दगति होती है तब अनुपात करते हैं यदि वेधकालान्तर में चन्द्रगति पाते हैं तो एक दिन में इससे एक दिनसम्बन्धिनी चन्द्रमन्दोच गति आईइससे पूर्ववत् कल्प चन्द्रभगण ले आना । बिम्बीय कर्णसम्बन्ध से भी चन्द्रमन्दोच्च भगणोपपत्ति हो सकती है । यथा प्रत्येक दिन वेध से चन्द्रबिम्बीय कणं साधन करना, जब चन्द्र शराभाव होगा उस दिन में चन्द्रबिम्बीय कर्ण के परमत्व में वेधागत स्पष्ट चन्द्र ही मन्दोच्च होंगे । द्वितीय पर्यय में भी इसी तरह चन्द्रमन्दोच्चों के अन्तर पर से पूर्ववत् कल्पचन्द्र मन्दोच्च भगण आ जाएंगे। चन्द्रपातभगणोपपत्ति दृष्टिस्थानाभिप्रायिक गोल का निर्माण करना ही वेधगोल है । दृष्टिस्थान ( बेघ