पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/५३

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

३६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तेः अब पूर्वोपपत्ति में वेधगोलीय नाडीवृत्त धरातल और भूगर्भगोलीय नाडीवृत्त घरातलान्सर ज्ञान से तथा वेधगोलीय क्रान्तिज्ञान से भूगर्भगोलीय क्रान्तिज्ञान के लिए जो युक्ति है उसी तरह की युक्ति वेधगोलीय शर और क्रान्तिवृत्तधरातलान्तर ज्ञान से भूगर्भगोलीय शरज्ञान के लिए होती है यह हमने जो लिखा है उसके लिए विचार करते हैं। । दृष्टिस्थान से जो गोल बनाया जाता है उसको वेधगोल या दृश्यगोल कहते हैं । और भूगर्भ से जो गोल बनता है उसे स्थिरगोल या भगोल कहते हैं । भूगर्भ से और दृष्टिस्थान से भचक्रस्थ ध्रुवतारागत रेखाद्वय अपने अपने गोल (भूगर्भगोल और वेधगोल' में जहां जहां लगता है वहां वहां दोनों गोलों में परिणत धृव होता है । इन दोनों (परिणत ध्रुवबिन्दुत्रों से नवत्यंश जो वृत्त बनते हैं। वे दोनों गोल में नाडीवृत्त होते हैं, भूगर्भ से और दृष्टिस्थान से शैवगत रेखाद्वय और भूगर्भदृष्टिस्थान से जो त्रिभुज बनता है उस त्रिभुज रूपी धरातल से कटित गोलद्वय का प्रदेश गोलद्वय में याम्योत्तरवृत्त होता है, स्वनाडीवृत्त धरातल और याम्योत्तर वृत्त धरातल की योगरेखा स्वनिरक्षोर्वाधरसूत्र है, वधत भूकेन्द्रदृष्टिस्थानान्तरेखा ऊध्र्वाधर सूत्र है । नांडीवृत्त ; घरातल के ऊपर ध्रुवसूत्र लम्ब है परन्तु दोनों गोलों के ध्रुवसूत्र समाना- न्तर हैं इसलिए दोनों गोलों के नाडीवृत्त धरातल समानान्तर हुए (रेखागणित की एकादशाध्याययुक्ति से), दृष्टिस्थान से भगोलीय नाडीवृत्त धरातल के ऊपर जो लम्ब होता है वही वेधगोलीय और भगोलीय नाडीवृत्त धरातलान्तर है, दोनों गोलों में अक्षांश समान होने से नाडीवृत्त धरातलान्तर ज्ञान करते हैं । भूगर्भ से दृष्टिस्थान पर्यंन्त ( केन्द्रान्तर ) एकभुज की दृष्टिस्थान से भगोलीय नाडीवृत्तधरातल के ऊपर लम्ब (नाडीवृत्तधरातलान्तर) द्वितीय भुज, गर्भाय नि क्षोर्वाधररेखाखण्ड तृतीय भुज, इन तीनों भुजों से उत्पन्न जात्यत्रिभुज में भूगर्भलग्न कोण =अक्षांशलम्बमूल बिन्दुलग्नकोण=&०, अतः अनुपात करते हैं , यदि त्रिज्या कोणज्या में केन्द्रान्तर पाते हैं तो अक्षज्या कोणज्या में क्या इस अनु- अज्या x कैन्द्रान्तर पात से नाडीवृत्त धरातलान्तर प्रमाण भ्राता है, नाडीवत्तधरा। तलान्तर । दृष्टिस्थान से स्वगोल स्थ रविगतरेखा और स्वनाडीवृत्त ( वेघगोलीयनाड़ी वृत्त) धरातल के अन्तर वेधगोल में वेधगोलीय क्रान्तिज्या है । वेधगोलीय क्रान्ति वेघगोलीय क्रांज्या x इष्टिकर्णी ज्या मापनद्वारा विदित है इसलिए =ग्रह से निरक्षो वेधगोल व्या च्र्वाधर सूत्र के ऊपर लम्बरेखा= लम्ब । अतः लम्ब + नाडीवृत्त धरातलान्तर = लम्ब ग्रहगो कांज्या xfत्र + अन्तर=ग्रहगोलीय क्रान्तिज्या । इसके ज्ञानसे भगोलीय ग्रविकर्ण ज्या=भूगर्भगोलीय क्रांज्या = स्थिरगोलीय क्रांज्या, इस रीति से वेधगोलीय आरज्ञान मे कान्तिवृत्त धरातलान्तरज्ञान से भूगर्भगोलीय शरज्ञान होता है यह (B) क्षेत्र देखिये ।