पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४०५

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३८८ ब्रह्मस्फुटसिद्धान्ते वलनामयनं कृतं यत् खण्डनं सिद्धान्तशिरोमणे भास्कराचार्येण “पेरुक्रमज्या विधिनैतदुक्त सम्यक् न ते गोलगतं विदन्ति' नेन कृतं यत् समीचीनमस्ति कैश्चित् ‘खङ्गहृतं स्वयुदलेन भक्त स्पर्शादिकालोत्थ नतं लवाः स्युरित्यादिना पूर्वसाघितं सममण्डलीयनतांशमानं सूक्ष्मं तत्साधितं वलनं सूक्ष्मं कथ्यते, तन्न युक्तम् । सूर्यसिद्धान्तेऽपि ‘नतज्याऽक्षज्यया क्षुण्णेत्यादिसाधितमाक्षवलनं न समीचीनमिति, उत्क्रमज्यया साधितं वलनं न समीचीनमेतदर्थे वटेश्वरसिद्धान्तो विलोक्य इति ॥१६॥ प्रब आक्षवलनानयन को कहते हैं। हि. भा.-पूर्वोकपाल में और पश्चिम कपाल में जो सममण्डलीय नतांश है उसकी ज्या और अक्षज्या के घात में त्रिज्या से भाग देने से जो लब्घ होता है उसका चापश करके ग्रह से तीन राशि पर पूर्वनत और पश्चिमनत क्रम से उत्तर और दक्षिण में प्रह वृत्तय सममण्डल से नाडीवृत्त की पूर्व दिशा होती है, यहाँ अग्निम श्लोक के ‘सममण्डनाएँ इस के साथ सम्बन्ध है ॥१६॥ ९५ कान्तिवृत्त में जहौ प्रहस्थान है उसके ऊपर धुवप्रोतवृत्त और समश्रोतवृत कर दिया, अह (प्रहस्थान) से नवत्यंश व्यासाघं से प्रहक्षितिजसंज्ञक वृत कर दिया, ध्रुवप्रोत वृत्त और समप्रोतवृत्त के अन्तर्गत ग्रह क्षितिज वृत्तीय चाप वा नाडीवृत्त और पूर्वापरवृत्त के अन्तर्गत प्रहक्षितिजवृत्तीय चाप वा प्रहलग्नकोण (ख़्वश्रोतवृत्त और समनोवृत्त से उपन्ल कोण) भक्षवलन खस्वस्तिक में ग्रह के रहने से सममण्डलीय नतांश ( अपरि गत समश्रोतवृत्त और पूर्वापरवृत्त के सम्पात से खस्वस्तिक पर्यंन्त) का अभाव होता है, नाडीवृत्त और पूर्वापवृत्त के सम्पात (पूर्वेस्वस्तिक) में अह के रहने से सममण्डलीब नतीश नवत्यंश के बराबर होता है और नतकाल दिनार्ध के बराबर होता है, इन दोनों के मध्य में ग्रह के रहने से अनुपात करते हैं यदि दिनावं तुल्य नतकाल में नवत्यंशे तुल्य सुममण्डलीय नताँश पाते हैं तो इष्ट नतकाल में क्या इस अनुपात से इष्ट सममण्डलीय नतांश प्रमाण आता है, लेकिन यह अनुपात ठीक नहीं है, ग्रह से गूज पर्यन्त बृज्या चापांश प्रथममुष, ग्रह से समस्थानपर्यन्त उपकोटि द्वितीय भूज, प्रकाश (पृ.व और समस्थान के अन्तर्गत याम्योत्तरवृत्तीय चाप) तृतीय भुज, इन तीनों भुषों से उत्पन्न पापीय त्रिभुज में १८०० –सममब्दलीयनतांश, अहलमकोख बनवलनव अनुपात परतें हैं यदि । पूज्या में प्रमुखनगुण्या= { " है इससदीय नवांश -खपमण्डलीय मज्या, पाते हैं तो अक्षज्या में इसकें बहु