पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३९५

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

७८ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते त्यनुपातेन स्थित्यर्धघटीसम्बन्धिनी चन्द्रगतिकला समागच्छति, पातस्याप्येवं म्थित्यर्धघटीसम्बन्धिनी गतिरानेया, आनीतफलाभ्यां क्रमेण हीनयुतौ चन्द्रपातौ पूर्वापेक्षया तौ विशिष्टौ भवतस्ततस्त्रिघन गुणाव्यासार्धभाजिता चन्द्रपातयोगज्ये त्यादिना चन्द्रशरमानीय "छावेन युतोनस्य छादकमानस्ये' त्यादिना स्थिति विमर्दाघं आनेतव्ये ततः ‘षष्ठया विभाजिता स्थितिविमर्देदलनाडिका गुणा स्वगति” रित्यनेन स्थित्यर्धघटीसम्बन्धिनीं चन्द्रगतिकलां पातगति चानीय तीनयुतौ चन्द्रपातौ काय तौ च पूर्वापेक्षया विशिष्ट भवत एवमसकृत्कर्मणा स्फुटं स्थित्यर्धा भवेत् । एवमेवाऽसकृकर्मणा स्फुटं विमर्दार्ध भवतीति, सिद्धान्त शेखरे श्रीपतिने ‘स्थिति विमर्ददलारव्यघटीहूता दिनकरेन्दु तमोमयभुक्तयः । गगनषक ६० हृताः प्रथमान्त्ययोः क्षयधने भवतस्त्वसकृतत:” त्यनेन, सिद्धान्त शिरोमणौ भास्कराचार्येणे “स्थित्यर्धनाडी गुणिता स्वभुक्तिः षट्चाहृता तद्रहितौ युतौ च। कृत्वेन्दु पातावसकृच्छराभ्यां स्थित्यर्धमाषं स्फुटमन्तिमं च । एवं विमर्दार्धफलोनयुक्तसपातचन्द्रोद्भवसायकाभ्याम्। पृथक पृथक् पूर्ववदेव सिद्ध स्फुटे स्त आद्यन्त विमर्दखण्डे” त्यनेन चाऽऽचार्योक्तानुरूपमेवोक्तमिति ।I९ ॥ अव स्थित्यर्ध और विमर्दाघं के स्फुटी करण को कहते हैं । हि- भा–अपनी गति (रविगति, चन्द्रगति, पातगति) को स्थित्यर्ध घटी और विमर्दाघं घटी से पृथक् पृथक् गुणा कर साठ से भाग देने से जो फल हो उनको रवि, चन्द्र और पात में से ऋण करना, अन्त में घन करना अर्धातु आद्य स्थित्यर्ध में धन और अन्य स्थित्यर्ध में ऋण, तथा आद्य विमर्दार्ध में घन और अन्य विमर्दार्ध में ऋण करना चाहिये, इसनरह बार बार पूर्वोक्त कर्म करने से स्थित्यषं और विमर्दाघं स्फुट होते हैं इति ॥ ६ ॥ उपपत्ति यदि साठ घटी में चन्द्रगति कला पाते हैं तो स्थित्यवं घटी में क्या इस अनुपात से स्थित्यर्ध घटी सम्बन्धिनी चन्द्रगति कला आती है, पात की भी स्थित्ययं घटी सम्बन्धिनी गति इसी प्रकार लाना, इन लाये हुये फलों को क्रम से चन्द्र और पात में से हीन और युत करने से पूर्व की अपेक्षा विशिष्ट चन्द्र और पात होते हैं, इनसे "त्रिघनगुणा व्यासार्थ भाजिता चन्द्रपातयोगज्या’ इत्यादि से चन्द्रशर लाकर ‘‘याधेन युतोनस्य छादकमानस्य ' इत्यादि से स्थित्यर्ध और विमर्दावं लाना चाहिये, तब "षष्ट या विभाजिता स्थितिविमर्देदल नाहिका गुणा स्वगतिः’ इससे स्थित्थघं घटी सम्बन्धिनी चन्द्रगति कला और पातगति ले आकर चन्द्र और पात में हीन और युत करने से पूर्व की अपेक्षा विशिष्ट चन्द्र और पात होते हैं इस तरह अवकर्म से स्फुट स्थित्यर्थ होता हैं, इसी तरह असकृत्कर्म ये स्फुट