पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३७२

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त्रिप्रश्नधिकारः ३५५ [ मरोनरं वृद्धिमनी भवन (रवेईक्षिणगमना) । चक्रुर्थे पदे ननांगस्थोनरोनरम- षडयन् पलभघि छाय!?यने, निरक्षाद्दक्षिणे देही प्रयमदे मयाननशोपचय मध्यच्छषोपच्यः । तत्र छायाग्रं दक्षिणदिश्येत्र भवेत् (त्रम्घम्मिशहून रम ग्वे- दधानः) । द्वितीयपदे मध्यनदशपचयान्मध्यच्छापत्रयः (२ वेनरोतरं दक्षिगमनात्) तृतीयपदे चतुर्थपदे च ननांगोपचयापचययनियमो नाम्नि तेन तथैठेन नियमेन मञ्श्रछायया पदज्ञनं न भवितुमर्हति, नैव हेने ‘‘वृद्धि पयान्तं यदि दक्षिरुग्राच्छाया तथापि प्रथमं पदं स्यात् । हृ.सं व्रजन्तीमथ नां त्रिलोकन रवेविजानीहि पदं द्वितीयम्” त्युक्तम् । सिद्धान्तशेखरे प्रारम्यस्य चमत्कारकार कस्योल्लेखदर्शनात् अवे पदेऽचयिनी पलभापिका स्यादित्यादि" प्रकारः कमलाकरस्य नास्ति, वस्तुनोऽयं प्रकारश्रीपतेरेवेति ।।६१-६२ मण कसिया से रति के प्रनयन ' को कहते हैं हैि. भा- क्रान्तिज्या को त्रिज्या से गुणा कर जिगज्या से भाग देने से रवि भुषा होती है, उसका नाप मेषादि तीन राशियों (प्रचमपद) में स्फुट रवि होता है. कादि तीन राबियों (द्वितीय पद) में उस बाप को छः राशियों में बटाने से तुलादि तीन राशियों (तृतीय पद) में चाय में छः राशि जोड़ने से, मकरादि तीन राशियों (गनुषे पद) में आप को बारह राशि में घटाने से स्फुट रबि होता है, शेष की अवस्था स्पष्ट है इति ६१-६३।। । यदि बिनया में त्रिज्या पाते हैं तो २ बि की निया में गा इव eिण के अनुपात से रविभज्या आती है, त्रिज्या = रविधुरज्या, इसका जाप भयम पद में स्फुट रि होता है । तीिय पक्ष में fअउण उस पाप की छः राक्षि में चटने से तृतीय पक्ष में बाप में अः शशि बोड़ने से, चतुर्ष पर में आप को बारह राशि में घटाने से स्ट रवि होता है । यह गल के प्रत्यक्ष देला आता है, सिद्धान्तशिरोमणि में "द्नुराह धरणे वर्षस्यर्क: प्रबाधतेऽन्येषु " इत्यादि से भास्करा- आयं प्रायक्ति के अनुरूप ही कहते हैं, लेकिन भाकरादि आचार्य ने रण पक्वल इतुकर्रन द्वारा किया है जो ठीक नहीं है इसके लिये सिद्धान्ततत्वविवेक में कभार ने “तुबिन्दैरिदं पूर्वे’ इत्यादि संस्कृतोपपत्ति में सिञ्चित सत्र में उसका निराकरण किया है । तब उसके बाद आन के लिये अपना प्रकार "आछे पदेऽपयबिन पनशअप्रिया स्याव्इत्यादि दिलसाया है। इसी युक्ति भार बघु दिग में अप्य अत्र में पांतुन छ । यो बाजा होती है वह षणभा है, उस विष से लेकर अनेक दिन नतांश. १२ कया. १२ निरख देख ठे उधर देश में स, शाशन का भाइ इ p: