निधनाधिकाः हैहै यदि त्रिज्ययेष्टान्त्या (ज्या) सम्यते तदा युज्यया कि समागच्छतीष्ट- इष्टान्या•द्य _ज्या-द्यु हृतिः =, ततो व्यासाचं वेदहतं विषुवत्कर्णाहतं कर्ण त्रि त्रिपलक_त्रि-पकत्रि-नि:पक इत्यनेन छायाकर्णः =पक_ तत इष्टशैर्युः इह्वांत ज्यायुज्यायु-घात' त्रि१- ति:१२-त्रि५२-ज्या-घु-त्रि-१२, ज्या-बु-लंब्या-ज्या = घात लंघ्याघात_वंलंज्या , भात– १२ , घात एतेनाऽऽचार्योक्तमुपपद्यते ॥३१-३२ ॥ अन प्रकारान्तर वे याकणं भर इष्टयंसे को कहते है हि- भा.-त्रिज्या वर्गों को प्रसङ्ग से गुणा कर इष्टान्नया () और प्या घात से भाग देने से था करें होता है । बा आत को आम्बर् वे मुख कर त्रिज्या गर्न से भाग देने से इष्टशंक होता है, या माता को बारह से गुखा कर लिया और असकी के भा5 से भाग देने वे इष्टचीङ होता है, चाफी वर्गों में बदल बों में काटा और युद्ध मेने से या होती है इति ॥३१-३२॥ यदि विश्व में इष्टान् गाते हैं वो ज्या में कण इखये इष्यति आती है इष्टान्वा-वृ=न •=d, -इति ‘आश्चर्य वं विलयं कङ ' इले • वि.पत_क्रि.पक_कि वि.१२_श.१२ अगङ् ---न हे इख इष्ट इति वा. या चक त्रिक . .१२.अ.खू_वि.१२. अ. १२ . ब --, इव आशय इन टु हि ३१-३२॥ मनः प्रलाप आदि अल्वरश्चक और
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