ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते भुज ये दोनों जो हों उनको उन दो दोनों के वर्गयोग मूल व्यासार्थोत्पन्न वृत्त में कल्पना करना इति ॥ ८ ॥ इदानों लम्बाक्षज्ययोरानयनमाह- वि- भा–शंकुशब्देनात्र द्वादशांगुलशंकुस्तथा छायाशब्देन पलभाया ग्रहणम् । द्वादशपलभेयोर्वर्गयोस्त्रिज्यावर्गगुप्तियोः तत्समासेन हृतयोः (द्वादशपलभयोर्वमापो- गेन भक्तयोः) मूले तदा क्रमेण लम्बाक्षज्ये भवतः। तद्धनुभागाः (तयोश्चापांशः) तदंशकाः (लम्बांशा अक्षांशाल) भवन्तीति ।। ९ ।। अत्रोपपत्तिः १६+पलभा =पलकर्णी, त्रि' '+ = लम्बज्या' =>XIत्र या पल १२पलभा' पलभा’ x त्रि =अक्षज्या’ एतयोमूले तदा लम्बाक्षज्ये भवतः। तयोश्चापे लम्वाक्ष १२ +पलभा भवेतामिति ।। ९ ॥ अब लम्बज्या और अक्षज्या के साधन को कहते हैं। हि- भा-शंकुशब्द से यहां द्वादशांगुलशक, और छायाशब्द से पलभा का ग्रहण करना चाहिये, द्वादश वर्ग और पलभा वर्गों को त्रिज्या वर्ग से गुणा कर द्वादशवर्ग और पलभा वर्ग के योग से भाग देने से क्रमसे लम्बज्या और अक्षज्या होती है, दोनों के चाप । करने से लम्बांश और अक्षांश होता है । ६ । उपपत्ति =कोटि, पलभा= भुज, पलकर्णी=कर्णी,) इन कोटि भुज कण से उत्पन्न लम्बज्या = कोटि, अक्षज्या = भुज, त्रिज्या=कणं, अक्षक्षेत्र सजातीय हैं इसलिये अनुपात करते हैं । पलभा'$त्रि' = अक्षज्या, परन्तु १२९ १२४२ == तम्बज्या', तया°7 = =अम्बष्या १२२xत्रि ; पलभा. त्रि ' पलक', अतः उत्थापन देने से -अक्षज्या, १२'+पलभा '१२' 4पलभा=दोनों के मूल सेने से लम्बज्या और अक्षज्या होती है, चाप करने से लम्बांश और अक्षांश होता है इति ॥ ८ ॥ इदानीं प्रकारान्तरेण तयोरानयनमाह वि. मा. -त्रिज्ये पृथक् शंकुच्छाया हते(द्वादश पलभागुणिते) विषुवत्कर्णहृते (पलकर्मभक्त ) लम्बाक्षज्ये भवतः। वा लम्बाक्षांशोत्क्रमज्योने त्रिज्ये अक्षज्येतर-
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