२५२ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते त्रिशतिथयोऽनस्तत्र रविचन्द्रान्तरांशाः=३०x१२=३६०°वा शून्यसमा अतो रवि- चन्द्रौ राश्याद्यवयवैस्तत्र समौ भवतः पक्षान्ते पञ्चदश तिथयोऽतस्तत्र रविचन्द्रान्त रशाः= १५४१२=१८०°=६ राशयः । अतस्तत्र रविचन्द्रावंशाद्यवयवैः समौ भवतः कथमन्यथा तयोरन्तरे केवलं राशय एव तिष्ठन्ति, कस्मिन्नपि तिथ्यन्ते रवि चन्द्रयोरन्तराशा द्वादशभक्ता एव भवितुमर्हन्ति, तेन तिथ्यन्ते कलाविकलासमत्वा देव केवलमंशा उत्पद्यन्ते, सिद्धान्तशेखरे श्रीपतिना ‘मासान्ते समताऽर्कशीतमहसोः क्षेत्रेण राश्यादिना पक्षान्ते पुनरेतयोः सदृशता भागादिना जायते, अन्यस्याश्व तिथे विरामसमये लिप्तादिना तुल्यता, ऽनेनाऽऽचार्योक्तानुरूपमेव कथ्यते। लल्लाचार्येण 'मासान्ते रविशनिनौ समौ भवेतां पक्षान्ते लवकलिकाविलिप्तिकाभिः । अन्यस्या अपि च तिथेः सदाऽवसाने तुल्यौ स्तः खलु कलिकावलिप्तिकाभिः पीदमेव कथ्यत इति ।। ६४ ।। अव रवि और चन्द्र के अन्तर को कहते हैं । हि. आभा-स्फुटमासान्त में रवि और चन्द्र के राशि, अंश, कला, और विकला सम होती है अर्थात् राशद्यवयव से दोनों बराबर होते हैं । तियन्त में उन दोनों के कला, विकला बराबर होती है प्रथात् कलाद्यवयव से बराबर होते हैं इति ।। ६४ ।। उपपत्ति । रवि और चन्द्र के अन्तरांश जब बारह अंश होते हैं तब एक तिथि होती है, स्फुट मासान्त में तीस तिथियां होती है इसलिये वहाँ रवि =३०x१२=३६० वां चन्द्रान्तरांश शून्य के बराबर, अतः वहां रवि और चन्द्र राश्याद्यवयवों से बराबर होते हैं। पक्षान्त में पन्द्रह १५ तिथियां होती हैं इसलिये रवि चन्द्रान्तरांश=१५४१२= १८०=६ राशि, अतः वहां रवि और चन्द्र अंशाद्यवयवों से बराबर होती है, क्योंकि उन दोनों के अन्तर करने से केवल राशि ही रहती है। किसी भी तिच्यन्त में रवि चन्द्र का अन्तरांश बाहर से विभक्त ही रहता है इसलिये तिथ्यन्त में रवि और चन्द्र कलाद्यवयव से बराबर होते हैं । सिद्धान्त शेखर में बीपति भासान्ते समताऽर्क शीत महसो , इत्यादि । संस्कृतोपपत्ति में लिखित इलोक से आयक्तानुरूप ही कहते हैं, लल्लाचार्य भी भासान्ते रवि शशिनौ समौ भवेताम्’ इत्यादि, संस्कृतोपपत्ति में लिखित नोक से इसी बात को कहते हैं इति ॥ ६४ ॥ इदानीं स्थिरकरणान्याह कृष्णचतुवंश्यन्ते शकुनिः पर्वणि चतुष्पवं प्रथमे । तिष्यर्षोऽन्ते नागं किंस्तुघ्नं प्रतिपदाद्वयें ॥ ६४ ॥
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