पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/२४५

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२२८ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते वर्ग करने से केग• त्रि'=उग• क*=उग (त्रि'+अफज्या'-२ केकोज्या . अ फज्या)=त्रि' (उग-२ उग• मग+मग’) =उग. त्रि4उगः अफज्या-उग-२ २ केकोज्याने अफज्या=त्रि-२ उग–-२ उग• मग• त्रि+त्रि’ . भग समशोधन से उग• प्रफया - उग- २ २ केकोज्या प्र फज्या=त्रि-२मग--२ उग• मग. त्रि' पुनः समशोधन से उग• २ केकोज्या अफज्या=उग'. अ फज्या +२ उग• मग- त्रि-त्रि. मग =उग' अ फण्या'+त्रि२. मग (२ उग-मग ) उग' प्रफज्या"+-त्रि-मण (२ उग-मग) २ उग- अ फज्या उग- अफज्या+त्रि (उग-केग) २ उग-अफज्या इसके चाप में नवत्यंश जोड़ने से कमलङ्करमतानुसार वारम्भे कालिक शीघ्र केन्द्रांश होता है । अतः प्रतीत्यर्थे गणित दिखलाते हैं। जैसे मङ्गल की अन्त्यफलज्या=७८, मध्यमगति=३१९२६ ", उच्चगति=५e'८', त्रिज्या=१२०, शीघ्रकेगति = २८’ अंफया'=(७८)२=६०८४,उग' =३४८१, उग• अफज्या ' =६०८४४३४८१४२११७८४०४१ केग=२८ ८८७८४ , उग–केग= ३४८१-७८४८२६e७, त्रि'=(१२०)'=१४४०० त्रि(उम्र-केग')=२६६७४१४४००=३८८३६८०० उग'अफज्या' +त्रि(उग-लैग ')=२११७८४०४+३८८३६८०७ ==६००१५२०४, २उग'=६६६२ २उग-अंफण्या=६३६२७८- ५४३०३६

उगप्रफच्या' +ति(उग–के') = ६००१५२०४ _ १११

२उग•g'फष्या । ५४३०३६ इसका चाप=६८° नवत्यंश जोड़ने से ६८+६०=१५८ *=कमलाकरमतानुसार बभरस्मकालिक मङ्गलाशी केन्द्रांश यह आचार्योक्तशीघ्रकेन्द्रांश १६३” से बहुत अन्तरित =