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पृष्ठम्:ब्रह्मसिद्धिः (मण्डनमिश्रः).djvu/२९०

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अनुक्रमणिका ३

ऋणानि त्रीण्यपाकृत्य

एकममृतमजम्

एतद्ध स्म वै तत्पूर्वं

एतस्माज्जायते प्राणः

एतस्य वा अक्षरस्य

एतस्यैवानन्दस्य

एतावानस्य महिमा

एतेनैव परं पुरुषम्

एष भूताधिपतिः

एष लोकपालः

एषोऽस्य परम आनन्दः

ऐतदात्म्यमिदं ।

सर्वम्

ओंकार एवेदं सर्वम्

ओमिति ब्रज

ओमिति युत

ओमित्यात्मानं भ्यायय

ओमित्येतदक्षरमुद्रीयम्

ओमित्येवोपासीत

पुटम्. पतिः आकरः,

27 Manu. 6-8-6. 86 11 7 Nrs. Utt. 1. 241 6 22 Chand. 6-2-1. 125 18 B6 7 Kaus 2-4 , 100 19 Mund. 2-1-8. 1 1 Brh. 3-8-१. 126 18 do. 4-3-82. 55 2 Pur. Shk. 3. 17 14 Prafna. 5-5. 127 14 Brh. 4-4-22. 124 16 Chénd. -8. 6-47127 14 Kaus• B-8. 116 | 8 BBrh. 4-8-82. 155 17 12 Chand. 2-2-3. 17 11 Tait. 1-8-1. 11 : C}. Mahana1ओ. ४4-2. 17 8 Mund. 2-2-6. 32 3 4 Gand. 1-1-1. ६.. ... 154 20Br. 1-4-7.