पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/८८

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2. करणीषद्विधम् । ८१ वज्जते खण्डे ६ || पुना रूपकृतेः ६४ षष्टिरूपा- रायपास्योक्तवत्खण्डे ३।५ एवं मूलकरणीनां यथा- क्रमं न्यासः क ६ क ५३क २ । चतुर्थवर्गस्य न्यासः । रू ७२ क० । इयमेव लब्धा मूलकरणी ७२ | पूर्व खण्डत्रयमा सीदिति ' वर्गेण योगकरणी विहता विशुध्येत् - ' इति षट्त्रिंशता विहृता शुभ्यतीति षट्त्रिंशतो मू- लम् ६ । एतस्य खण्डानां १ | २ | ३ | कृतयः १ ॥ ४ ॥ पूर्वलब्ध्यानया २ क्षुण्णाः २।८।१८ एवं पृथकरण्यो जाताः क २८ क १८ । -अब पहिले सिद्ध किये हुए वर्गों को मूल के लिये लिखते हैं- ( १ ) 'रू १० क २४ क ४० क ६०' यहां रूप १० का वर्ग १०० हुआ । इसमें एक करणी के तुल्य रूप घटाने से मूल नहीं मिलता और तीन करणी के तुल्य रूप घट नहीं सकता, इस कारण दो करणी के तुल्य रूप घटाना चाहिये तो 'क २४ क ४०' अथवा 'क २४ क ६०१ अथवा 'क ४० क ६० ' इन दो दो करणियों के तुल्य रूप घटता है, अब यहां क २४ और क ४० को घटा कर मूल साधते हैं-रूप १० वर्ग १०० में 'क २४ क ४० ' के तुल्य रूप घटाने से शेष ३६ बचा इसका मूल ६ हुआ इसको रूप में जोड़ने और घटाने से १६ और ४ हुए इनका आधा ८।२ हुआ इसप्रकार मूल में दो करणी हुई । वर्ग में एक करणी और अवशिष्ट रही इस कारण बड़ी मूलकरणीको रूप कल्पना में