पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/७५

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६८ वीजगणित-- भीप्सिताः स्युः || १६ || १७ || अथ पृथकरणसूत्रं वसन्ततिल- कया निरूपयति-वर्गेखेति । योगकरणी येन वर्गेण विहता सती विशुध्येतत्कृतिपदस्य यथेप्सितानि खण्डानि कृत्वा तदीयकृतयः पूर्वलब्ध्या सुहा: पृथकरण्यो भवन्ति । सा चासौ कृतिश्चेति कर्मधारयो द्रष्टव्यः । एतदुक्तं भवति-योगकरणी येन वर्गेण विहता सती निःशेषा भवेत्तस्य वर्गस्य मूलं ग्राह्यम्, तस्य खण्डानि प्रष्टुर्यावन्त्यभीष्टानि तावन्ति कृत्वा तेषां खण्डानां वर्गाः कर्तव्याः । ते वर्गा: पूर्वलब्ध्या क्षुलाः वर्मेण हृतायां योगकरण्यां या लब्धिः सा पूर्वलब्धिः । तथा गुणितास्ते वर्गाः पृथक्करण्यो भवन्ति ॥ १८ ॥ दूसरे उदाहरण में कितना गुणभाजक भाज्य में घट सकेगा यह ज्ञान होना अत्यन्त दुर्बोध है इस लिये परमकृपालु आचार्य शिष्यजनों के बोध के वास्ते इस दूसरे प्रकार को कहते हैं- छेद कहिये भाजक में एक करणी धन और ऋका व्यत्यय अर्थात् हेर फेर करके वैसे छेदसे भाज्य और भाजकको गुण दो। यह क्रिया वारवार तबतक करते जाओ कि जबतक छेद में एकही करणी न होजाय । बाद उस करणी का भाज्यगतकरणियों में भाग दो जो लब्धि मिले वह इष्ट करणी .होगी, यदि योगजकरणी लब्ध आवे तो उनको प्रश्नकर्त्ता की इच्छा के अनुसार विश्लेष सूत्र. • से अलग करो || विश्लेषसूत्र अर्थात् करणियों के अलगाने का प्रकार -- योगकरणी जिस वर्गसंख्या के भाग देनेसे निःशेष हो उसका मूल लो और प्रश्नकर्ता को जितने खण्ड अपेक्षित होवें उतने उस मूलसंख्या के खण्ड करो बाद उन खण्डों का वर्ग करके उन्हें योगकरणी में वर्गसंख्या का भाग देने से जो लब्धि मिली थी उससे गुण दो वे अलग अलग योगकरणी के खण्ड होंगे ।