पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/७०

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करणीपडियम् | एतास्वनयोः क ६२५८१ मूले रु २५ रू अन- योर्योोंगे जात रू १६ नोक ६७५ क ७५ न्तरे योग इति जातो योगः क ३०० यथाक्रमं न्यासः रु १६ क ३०० इति करणीगुणनम् || थोपजातिकया विशेषमाह-क्षय इति । यदि क्षयरूपाणां वो भवेत् क्षयरूपवर्गश्चेत्करणीत्वनिमित्तं सा 1 ध्यते | 'न मूलं क्षयस्यास्ति -' इत्यस्पापवादमाह - ऋणात्मिकाया इति । ऋणात्मिकायाः करण्या मूलं तर्हि क्षयो भवेचेन्मूलं रूप- विधाननिमित्तं साध्यते इति ॥ १५ ॥ विशेष- ऋणरूप का वर्ग ऋण होता है जो वह करणी के लिये सिद्ध किया जाये । और ऋणकरणी का मूल ऋण होता है जो उसका रूप करना हो यह ' न मूलं क्षयस्यास्ति तस्याकृतित्वात् ' इस सूत्र का अपवाद है || उपपत्ति- यहांपर जो करणीगुणन के लिये रूप का वर्ग किया जाता है वह यद्यपि वन है तोभी उसका मूल ऋण होगा क्योंकि 'स्वमूले घन' अर्थात् धन का मूल वन और ऋण होता है । करणी के योग से मूलों का योग वर्ग साधा जाता है वहां जो ऋणरूपवर्गकरणी को धन कल्पना करलें तो उस धन करणी का योग होजायगा और उसका मूल मूलयोग होगा परंतु वहांपर मूलान्तर होना उचित है क्योंकि ' धनर्णयोरन्तरमेव योग: ' अर्थात् धन और ऋण राशि का अन्तरही योग होता है इस का- रण करणी की ऋणसंज्ञा मूल की ॠणता के प्रकाश के लिये किया है जैसा रूई रू ७ इनका योग ४ वर्ग १६ होता है परंतु यह करणी को