पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/६२

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करणीषड़िधम् । ५५. । त्वं वा स्यातर्हि रूपाणों वर्ग कृत्वा गुणनभजने कार्ये । करण्या वर्गरूपत्वादिति । वर्गस्यापि समद्विघाततया गुरपनविशेषत्वा दुक- वत्सिद्धि: । 'स्थाप्योऽन्त्यवर्गो द्विगुणान्त्यनिघ्नाः-' इत्यादिना व्यक्कोक्कप्रकारेण वा करणीवर्गस्य सिद्धि: स्यात् । किंतु 'वर्गेण वर्ग गुपयेत्' इत्युक्त्वात् 'द्विगुणान्त्यनिघ्नाः' इत्यत्र चतुर्गुणान्त्य- निघ्ना इति द्रष्टव्यम् । मूलज्ञानार्थ तु सूत्रं वक्ष्यति ॥ १३ ॥ अथ प्रकारान्तरेण योगान्तरे 'लव्या हृतायाः- ' इत्यादिना निरूप- यति लघव्या करण्या हृतायाः महत्या करण्या यत्पदं तदेकत्र सैकमपरत्र निरेकं कार्यम् । उभयमपि वर्गितं लघुकरणीगुणितं च क्रमेण करण्योयोगान्तरे स्तः । अत्र लघ्या महत्या भागे यदि भिन्नता स्यात्तर्हि मूलाभावे मूलार्थ यथासंभवमपवर्ती द्रष्टव्यः । करण्योर्मध्ये तो लघुः सा लघुः । याङ्कतो महती सा मह तीति ज्ञेयम् । अत्र लव्या हृताया महत्या यदि मूलं न लभ्यते तर्हि योगान्तरे कथं कर्तव्ये इत्यत आह - 'पृथस्थितिः स्याद्यदि नास्ति मूलम्' इति ॥ १४ ॥ करणी के जोड़ने और घटाने का प्रकार- जिस राशि का निरग्र अर्थात् पूरा मूल न मिलै उसे करणी कहते हैं। योग्य योजक अथवा बियोग्य वियोजकरूप जो करणी होवें उनका योग करो और उसको महतीसंज्ञक जानो। फिर उन्हीं करणियों के घांत को दूना करो और उसकी लघुसंज्ञा जानो। इस प्रकार महती और जो दो करणी सिद्ध हुई उनका रूप के समान योग और अन्तर करो करणी के गुणन करने में जो रूप गुण्य और गुणक हों, भजन करने में भाज्य और भाजक हों तो रूपों का वर्ग करके बाद गुणन और भजन करो ॥ करणी के जोड़ने और घटाने का दूसरा प्रकार- योज्य योजक और वियोग्य वियोजकरूप जो दो करणी होती हैं उन में जो सबसे बड़ी हो उसको महती जो छोटी हो उसे लघु कहते हैं ।