पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५५४

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j अनेकवर्णमध्यमाहरणम् | ५४६ • उक्त रीतिसे कालक मान नीव ४ नी १ रू १ आया | कल्पित मूल नी ८ रू १ का पहिले पक्षके मूल या ५ के साथ समीकरण करने नीदं रू १ से यावत्तावत् का मान भिन्न आया उसका अभिन्न मान या ५ जानने के लिये कुक के अर्थ न्यास | भा० ८ | क्षे० १ हा० ५। वल्ली १ पी ८ रू ५ यावत्तावत् थी ५ रू ३ नीलक १ १ १ उससे दो राशि ३ | २ ये बल्ली विषम होने से अपने अपने हार में शुद्ध करने से लब्धि ५ और गुण ३ हुआ। लब्धि भाजकवर्य यावत्तावत्का मान और गुण नीलकका मान हुआ, वे पीतक १ इष्टमानने से ' इष्टाहत --' इसके अनुसार सक्षेप हुए वे पीतक में शून्य का उत्थापन देने से यात्रत्तात्रन्मान ५ या यही राशि है । वा पीतक में एकका उत्थापन देने से राशि १३. आया। यहां कालक मान में उत्थापन देने से वह लब्धिके तुल्य नहीं आता और दूसरे पक्षका कल्पितमूल के साथ साम्यक्रिया भी संदिग्ध है क्योंकि हर पाठपठित और रूप शोधनादि सिद्ध ग्रहण किये गये हैं इसलिये संदिग्ध कहते हैं .--- राशि या १ वर्ग पञ्चगुण और त्रियुत भाज्य यात्र ५ रू ३ हुआ यह १६ के भाग देने से निरम होता है इसलिये हर १६ और कल्पित