पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५५०

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

अनेकवर्णमध्यमाहरणम् । घनेन साम्यं कृत्वा प्राग्वजातो राशिः सक्षेपः नी५ रू ६ उत्थापने कृते जातो राशिः ६ | वा १९ । P घनकुटके क्रियादर्शनार्थमुदाहरणमनुष्टुभाह - षड्भिरिति । कुट्टको हि गुणविशेष इत्युक्तं प्राक् | स इह घनरूपोस्त था पूर्व- स्मिन्नुदाहरणे वर्गरूपः, अत्र कुडकवत्क्रियासाम्यात् ' वर्गकुट्टका, घनकुड्डकः' इति कथ्यते । अन्वयें संज्ञा || उदाहरण-- वह कौन राशि है जिसके घन में छु घटाकर पांच का भाग देने से निरग्रता होती है । राशि या १ का धन याघ १ छ से ऊन याव १ रू ६ पांच का भाग देने से शुद्ध होता है इसलिये हर ५ और कल्पित लब्धिका १ का घात भाज्य के तुल्य हुआ याव १ का ० रू ६ याघ ० का ५ रू० समशोधन से हुए याघ १ का ५ रू ६ पहिले पक्ष का घनमूल या १ आया और दूसरे पक्ष का घनमूल नहीं आता इसलिये ' हरभक्तो यस्य घनः शुध्यति — इसके अनुसार किया करनी चाहिये वहाँ रूप ६ का भी बनमूल नहीं आता तो अब हार ५ से तष्टित रूप १ में तेंतालीस से गुणे हुए हार ४३४५ = २१५ को जोड़ने से २१६ घनमूल ६ आया यह रूपपद हुआ। और इष्ट घन १२५ हर • ५ के भाग देने से शुद्ध होता है तथा इष्ट ५ तीन ३ और रूपपद ६ से 'गुणा ६० हर ५ के भाग देने से शुद्ध होता है इसलिये इष्ट ५ से अन्य