वीजगणित- आलाप - राशि ११ के वर्ग १२१ में ३० घटाकर शेष ६१ में ७ का भागदेने से शुद्धि होती है और लब्धि १३ काखकमान १३ के तुल्य आती है || उपपत्ति- यदि दूसरे पक्ष के रूपों का मूल न आता हो तो उनमें इस भांति इष्टगुणित हर जोड़ो कि जिसमें वर्गरूप होजावें । जैसा - प्रकृत उदा- हरणमें दूसरा पक्ष का ७ रू २० है यहां रूप ३० हर ७ से से २ रहा इसमें द्विगुण हर १४ करने देने से १६ हुआ यह वर्ग दूने हर से ऊन ३०-१४=१६ रूप के तुल्य है अब उसके मूल ४ को यदि रूप ४ कल्पना करें तो उसके वर्ग १६ का दूसरे पक्ष के रूप ३० के साथ समशोधन करने से शेष १४ रहता है यह दूने हर के तुल्य है तब उसमें अव्यक्त शेष हर ७ का भाग देने से इष्ट २ लब्धि मिलेगी और शेष का अभाव होगा इस भांति यहां पर भी मान अभिन्न सिद्ध होता है । यदि ' वर्ग इष्ट अङ्क से गुणित, क्षेप से युत वा ऊन और हर से भागा निःशेष होता है ? ऐसा आलाप हो तो इष्टाक गुरिणत हर को द्वितीय वर्णाङ्क कल्पना करो यों उक्त रीति से उद्दिष्ट सिद्धि होगी ॥ . PARENT उदाहरणम्- षड्भिरूनो धनः कस्य पञ्च भक्को विशुध्यति । तं वदाशु तवालं चेदभ्यासो घनकुट्टके ॥ १६ ॥ * अत्र राशि: या १ अस्य यथोक्तं कृत्वाद्यपक्षस्य घनमूलं या १ परपक्षस्यास्य काध ५ रू ६ ' हरभक्को यस्य घनः शुध्यति सोऽपि त्रिरूपपदगुणितः -' इत्यादि युक्त्या नीलकपञ्चकस्य रूपपद्काधिकस्य