पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५४७

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५४२ बीजगणिते- ‘ रूपपदेनान्वितः कल्प्यः' यह कहा है। और इष्टाङ्क से गुणेहुए अन्य नी ७ में इष्टाङ्क रूप गुणक ७ ऐसा कल्पना किया कि जिसमें वर्गात्मक तृतीयपक्ष नीव ४६ नी २८ रू ४ द्वितीयपक्ष का ७ रू ४ के साथ समीकरण करने से नि:शेष होवे । जैसा- श्राद्यपक्ष शेष नीव ४६ नी २८ में अव्यक्त शेष का ७ का भागदेने से निरम लब्धि नीव ७ नी ४ आती है इससे अभिन्न मान होगा। यहां जिस अङ्कका वर्ग हर ७ का भाग देनेसे नि:शेष होता है सो इष्टाङ्क ७ कल्पना कियागया है और दूसरे शेषकाला विधिसे हरगुणित वर्णके तुल्य होता है इसलिये 'हरभक्ता यस्य कृति: शुध्यति - ' यह कहा है। और कल्पित तीसरे पक्षका मूल खण्डद्वयात्मक नी ७ रू २ है उसके वर्ग करने में तीन खण्ड होते हैं नीव ४६ नी २८ रू ४ अर्थात् अनी ७ का वर्ग नीव ४६ पहिला खण्ड, नीलक ७ और रूप २ इनका दूना घात नी २८ दूसरा और रूपवर्ग ४ तीसरा। यहां पहिला खण्ड नीव ४६ हर ७ का भागदेने से निःशेषही होगा क्योंकि हरभक्ता यस्य कृतिः - ऐसा कहां है । और दूसरा खण्ड नी २८ रूपपद २ और २ से गुणा हुआ इष्टाङ्क ७ है, इसलिये 'शुध्यति सोऽपि द्विरूपपदगुणित: ' यह कहा है | इष्टाङ्क, रूपपद और दो इनके घातमें इष्टाङ्कका भाग देनेंसे लब्ध रूपपद और दो इनका घात आता है वह निःशेषही है, इस युक्तिसे तीसरे पक्षके मूलका पहिले पक्षके मूल के साथ समीकरण करनेसे राशि ज्ञान होना उचित है क्योंकि वे तीनों पक्ष आपस में समान हैं । अब 'न यदि पदं रूपाणां - इस सूत्र खण्डकी व्याप्ति दिखलाने के लिये उदाहरण - राशि या १ का वर्ग ३० से ऊन करनेसे याव १ रू ३० हुआ यह ७ के भाग देनेसे शुद्ध होता है इसलिये हर ७ और कल्पित लब्धिका १ का घात का ७ भाज्यके तुल्य हुआ Ska