पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५१३

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बीजगरिंगते- स्वक्षेपकोनी वियोगयोगौ स्यातां ततो वियोगयोगाभ्यां संक्रमसूत्रेण राशी भवेताम् || जैसा यहां पर चार प्रकार से राशि कल्पना की है इसी भांति नाना- विध राशिकल्पना हो सकती है परन्तु वे मन्दजनों को कठिन हैं इस लिये अब क्रिया के द्वारा कल्पनोपाय कहाजाता है - पहिले रूप से सहित अथवा रहित अव्यक्त को वियोग मूल कल्पना करो और वर्मान्तरक्षेप में योगान्तरक्षेप का भाग देने से जो मूल आवे उसे वियोग मूल में जोड़ दो तो वह योगमूल होगा बाद उन योग वियोग के मूलों का वर्ग करो और उनमें क्षेत्र घटा दो वे योग वियोग होंगे फिर उनपर से संक्रमण से राशि आवेंगे || उदाहरण - जैसा रूप से रहित अव्यक्त को वियोगमूल कल्पना किया या १ रू १ और वर्गान्तर क्षेप ८ में योगान्तरक्षेप २ का भाग देनेसे ४ + लब्ध आया इसका मूल २ आया इसको कल्पित वियोगमूल या १ रू १ में जोड़ देने से योगमूल या १ रू १ हुआ और योगमूल या १ रू १ योग १ रू १ के वर्ग हुए याव १ या २ रू १ | याव १ या २ रू १. इनमें योगान्तरक्षेप २ | २ घटा देने से योग याव १ या २ रु १ और वियोग याव १ या २ रू १ हुआ और योग याव १ या २ रू १ में वियोग याव १ या २ रु १ जोड़देने से याव २ रू २ हुआ इसका आधा पहिला राशि याव १ रू १ हुआ | और योग याव १ या २ रू १ में वियोग याब १ या २ रू १ बटा देने से या ४ हुआ * इसका आधा या २ दूसरा राशि हुआ । इसभांति ' यत्स्यात्साल्यवधार्धतो धनपद- इस उदाहरण में उक्त राशि सिद्ध हुए ॥ • इसी प्रकार रूपयुक्त अव्यक्त को वियोगमूल कल्पना किया या १ रू१ और वर्गान्तर क्षेप ८ में योगान्तर क्षेप २ का भाग देने से ४ लब्धि आई इसका मूल २ आया इसको पूर्वकल्पित बियोगमूल या १ रूं १ मे ८