पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/५

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ॐ नमः शिवाय । अथ तत्र भवद्भिः श्री ६ भास्कराचार्यैः स्थ बीजग रिपतस्य भूमिका | ये गणितानुरागिणः | लीलावतीसंज्ञित व्यक्कगणितं संस्कृत--- "हिन्दीभाषालेखाभ्यां प्राग् व्याख्यातमस्माभिरिति प्रसिद्धं तावत् | यदनन्तरमेवास्या लीलावत्या द्वित्रा हिन्दीटीका मोहमय्यादिनगर्या प्रकाशिता इति श्रूयते । संप्रति बोजसंज्ञितमव्यक्कमरिणतं तथा प्राप् व्याख्यातमेव यथास्थानं परिवर्त्य परिष्कृत्य च प्रकाशितम् | अपि चेदानीमहरहः पाश्चात्यनुतनसंकेते नैव भारतीयगरिणतोषपत्तीनामुश्लेखो बोभूयते, तत्रैव पुनर्नव्पगाणितिकानां सानुरागा प्रवृत्तिरुपचीयते, ताबला मन्ये कतिपय समयेन मांची नगणितमक्रिया लुप्ता भविष्यतीति । १ प्राचीन शिलालेख अथवा ताम्रपत्रों में कहीं कहीं बीजगणित के अनुसार संवत् शक आदिका लेख रहता है, इसलिये पुरातत्त्व ढूंढ़नेवालों को इस गणित में भी परिचय रखना आवश्यक है। उदाहरण -- 'यत्मिक चतुर्मु पक्षतिथिवारक्षेषु पक्षो नग- चिप्नोऽन्यैस्त्रिभिरन्वितः स्मृतिलय: स्यात्साष्टिशाकस्य सः । नन्दघ्न स्तिथिरन्ययुक् सव लवो विश्वनवारोऽन्ययुम् वा तत्त्वनभमन्ययुक्तमथ्वैषास्योद्धृतौ स्यान्मितिः ॥ यहां शक, पक्ष, तिथि, वार और नक्षत्र के मान क्रम से उनके आद्यवर्ण कल्पना २ न करने से शक आदि के मान से सिद्ध होते हैं- फिर कुट्टक द्वारा १वा • नक्षत्र का मान ३ रूप जानकर शक आदिवों में उत्थापन देने से यह समय ज्ञात होता है— शक= १६६४ पक्ष तिथि= १२वार और नक्षत्र ३ अर्थात् शालिवाहन शक १६१४ वैशाख शुक्ल द्वादशी शुक्रवार कृत्तिका नक्षत्र | उक्त श्लोक जयपुर-यन्त्रालय के ' दक्षिण गोलमन्त्र ' पर जो श्लोक खुदे हैं उनमें से सातवां श्लोक है इसका संशोधन और गणित हमारे प्रिय शिष्य श्रीमावशास्त्री पुरोहित मे किया है । शति २वा ६५ ते ·

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