पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४६

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वर्खषडियम् । !- खण्ड से, तीसरे स्थान में तीसरे खण्ड से इस प्रकार ' स्याद्रूपवर्णामिहतौ वर्ण:--' इस सूत्र के अनुसार गुणन करने से जो फल उत्पन्न हो उसको पहिले कहे हुए ' योगोऽन्तरं तेषु समान जात्यो:- , इस सूत्र की और ' योगे युतिः स्यात् क्षययोः स्वयोर्वा --- ' इस सूत्र की रीति से जोड़ो वह गुणनफल होगा। यहां अव्यक्त के गुणन करने में वर्ग के गुणन करने में और करणी के गुणन करने में व्यक्त में जो खण्डगुणन का प्रकार कहा है उसीको जानो। यहां 'खण्डगुणन , यह पद उप- लक्षण है : इस कारण और भी गुणन के प्रकारों को जानो ॥ उपपत्ति - - इसकी उपपत्ति लीलावती की टीका में देखो | उदाहरणम्- यावत्तावत्पञ्चकं व्येकरूपं यावत्तावद्भिस्त्रिभिः सद्धिरूपैः | संगुण्य द्रा हि गुण्यं गुणं वा व्यस्तं स्वर्ण कल्पयित्वा च विद्वन् ॥ ६ ॥ न्यासः । गुण्यः या ५ रूपं । गुणकः या ३रू २ ॥ गुणनाजातं फलम् याव १५ या ७ रू २ । गुण्यस्य घनर्णत्वव्यत्यासे या ३ रू. २ न्यासः । गुण्यः या ५ रू १ गुणकः गुणनाजातम् याव १५ या ७ रू २ । गुणकस्य धनर्णत्वव्यत्यासे न्यासः । गुण्यः या ५ रू १ गुणक: या ३ रू ३