पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४५४

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अनेकवसमीकरणम् | ५२०+२६ =५४६ ५१०+३६ =५४६ ५० +४६६=५४६ शङ्का -- यहांपर पहिली लब्धि २६ आई है और कुट्टक करनेसे कालक की उमिति ३० आती है सो नहीं चाहिये क्योंकि लब्धिका मान कालक मानचुके हैं इसलिये दोनों की एकता होनी चाहिये । से समाधान - लब्धि दो प्रकारकी होती है, एक घनशेष, दूसरी ऋणशेष, और शेषभी दो प्रकारका होता है, एक घनशेष, दूसरा ऋणशेष । हरसे न्यून जिस अङ्क से घटा हुआ भाज्य हरके भाग देने से शुद्ध होवे वहां शेष धन शेष और लब्धि धनशेष लब्धि कहलाती है। इसी भांति हर से न्यून जिस से जुड़ा हुआ भाज्य हर के भाग देने से शुद्ध होवे वहां शेष ऋणशेष और लब्धि ऋणशेष लब्धि कहलाती है। जैसा भाज्य २६ और हर १३ है, अब भाज्य २६ में हर १३ से न्यून ३ को घटाकर २६ में हर १३ का भाग देने से शेष शून्य ० रहा और लब्धि २ आई, यह लब्धि २ तथा रूप ३ ये दोनों क्रम से धनशेपसंज्ञक लब्धि और धन- शेषसंज्ञक शष कहे जाते हैं । इसीभांति भाज्य २६ में हर १३ से न्यून १० को जोड़कर ३६ में हर १३ का भागदेने से शेष शून्य ० रहा और लब्धि ३ आई अब यह लब्धि ३ तथा रूप १० ये दोनों क्रमसे ऋणशेष संज्ञक लब्धि और ऋणशेषसंज्ञक शेष कहेजाते हैं। यहां हीन और युत भाज्य २६ । ३६ का अन्तर १३ शेषों ३ | १० के योग १३ के समा- न है । और वह अन्तर हर १३ के तुल्य है, अन्यथा क्योंकर वे हर के भा गदेने से शुद्धहोंगे, और २ । ३ इनदोनों लब्धियों का रूप १ तुल्य [अन्तर होता है इसलिये धनशेष लब्धि २ में १ जोड़ने से ॠशेष लब्धि ३ होती है और ऋणशेष लब्धि ३ में १ कम करदेने से धनशेष लब्धि २ होती है । इसभांति सर्वत्र जानना चाहिये । प्रकृत में केवल भाज्यका रूपमित