पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४२

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चषिडियम् । ३५ 6 ८ यह है कि रूप से वर्ण को गुणने से अथवा वर्ग से रूप को गुणने से गुणनफल अङ्कात्मक और रूप के स्थान में वर्ष होजाता है अर्थात् 'रू' इस अक्षर के आगे लिखे हुए जो अङ्क हो उनका और यावत्तावत् आदि वर्ण के आगे लिखे हुए अों का आपस में व्यक्तगणित में कही हुई रीति के अनुसार गुणन होगा और 'रू' अक्षर के स्थान में याव- तावत् कालक नीलकं आदि के पहले के वर्ण या, का, नी आदि अक्षर लिखे जाते हैं। सजातीय वर्गों से सजातीय दो तीन आदि वर्णों को गुणने से उनके वर्ग धनचतुत आदि होते हैं। आशय यह है कि यावत्तावत् को यावत्तावत् से गुणने में उन दो सजातीयों के सम- द्विघात होने से यावत्तावद्वर्ग होता है, जो यही ( यावत्तावद् वर्ग ) फिर यावत्तावत् से गुण दिया जाये तो समान तीन घात होने से यावत्ता- बद्धन होगा, वह फिर यावत्तावत् से गुणा जावे तो समान चार घात होने से यावत्तावद्वर्गवर्ग होगा, वह भी जो यावत्तावत् से गुण दिया जाये तो समान पांचवात होने के कारण यावत्तावद्वर्ग और उसके घन का घात होगा, इसी भांति षड्यात करने में यावत्तावत् के वर्ग का धन या यावत्तावत् के घन का वर्ग होगा। इसी प्रकार कालक आदिव के समान दो तीन आदि घात करने से उन के ( कालक आदिकों के ) वर्ग धन आदि होंगे। विजातीय वर्णों के घात करने में उनका भावित होता है अर्थात् यावत्तावत् से कालक को गुणने से यावत्तावत्कालक- भावित होगा, कालक से नीलक को गुणने से कालकनीलकभावित होगा, यावत्तावत्कालकभावित जो कालक से गुण दिया जाये तो यावत्तावत्- कालकवर्गभावित होगा, यह जो यावत्तावत् से गुण दिया जावे तो यावत्तावत्वर्ग कालकवर्गभावित होगा, यहां पर लावत्र के लिये यात्रत्तावत्- कालकभावित के स्थानपर केवल 'यांकाभा' ये उनके आद्याक्षर लिखते हैं । इस प्रकार गुणन की रीति को कहकर अब भागहार यदि कहते