पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/४१४

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सीकरणम् । ४०६ अथान्यदुदाहरणमार्थयाह-स्टुरिति । केषु राशिषु पञ्चसप्त- नवभिः एषु हतेषु विंशत्या हृतेषु भक्तेषु रूपोत्तराणि, रूपमेक उत्तरो वृद्धियेषां तानि रूपोतराणि शेषाणि उर्वरितानि स्युः, वा प्सयो लब्धयक्ष शेषसमा एव स्युः || उदाहरण-Srkris (सम्भाषणम्) वे तीन कौन राशि हैं जिनको क्रम से पांच, सात और नौ से गुण देते हैं और बीस का भाग देते हैं तो रूपोत्तर शेष तथा शेष समान ती हैं । 4 कल्पना किया कि X का १ नी १ पी १ ये राशि हैं और पहला शेष या १ है | इसमें रूप १ जोड़ देने से दूसरा शेष या १ रू १ हुआ । इसमें रूप १ जोड़ देने से तीसरा शेष या १ रू २ हुआ । और अपने अपने शेष के समान लब्धि कल्पना की जैसा - पहिली लब्धि या १ दूसरी लब्धि या १ रू १ तीसरी लब्धिया १ रू २ ३ अब पहिला राशि का १ है यह से गुण देने से का ५ हुआ इसमें बीस का भाग देने से लब्धि या १ आई इसको हर २० से गुणकर भाज्य राशि का ५ में घटा देने से शेष का ५ या २० रहा यह कल्पित शेष या १ के समान है इस लिये समीकरण के लिये न्यास | का ५ या २० या १ समशोधन करने से यावत्तावत् की उन्मिति- ५ आई दूसरा राशि का ५ या २१ नी १ है ७ से गुण देने से नी ७ हुआ इसमें बीस का भाग देने से लब्धि या १ रू १ आई इसको हर २० से गुणकर भाज्य राशि नी ७ में घटा देने से शेष नी ७ या २० रू २० रहा यह कल्पित शेष या रू १ के तुल्य है इसकारण समीकरण के लिये न्यास |