पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३७६

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2 अनेकवर्णसमीकरणम् | ३७१ दृढ़ भाजक साज्य को इष्टवर्ण से गुण दो और तादृश भाजक भाग्य को क्षेप कल्पना करो फिर क्षेप से सहित अपने अपने मान से पूर्व वर्णोन्मिति के वर्ष में उत्थापन दो और अपने अपने छेदका भाग दो यो जो लब्ध मिले वह पूर्ववर्ण का मान होगा ( अगिले वर्ण के मान जानने से उसके पहिले वर्ण का मान ज्ञात होता है जैसा कालक के मानसे याव- त्तावत् का मान, नीलकमान से कालक का मान, इसलिये उसको विलोम उत्थापन कहते हैं ) यदि विलोम उत्थापन करने से भी पहिले वर्ष का मान भिन्न आवे तो फिर कुक करो और वहां पर भी गुण लब्धि को सक्षेप करके भाज्य भाजक के वर्ण मान को जानो । यहां उस सक्षेप गुणसे अन्त्य वर्णमान में जो वर्ण हो उसमें उत्थापन देकर फिर याद्य से व्यस्त ( उलटा ) उत्थापन दो ( जिस मान में पहिले उत्थापन देने से भिन्न मान आया रहा वह मान आद्य है ) यहां पर जिस वर्ण का व्यक्त व्यक्त जो मान आया है उसको व्यक्ताङ्क से गुण देने से उस वर्ष का निरसन अर्थात् दूरीकरण होता है इसलिये उसको उत्थापन कहते हैं | उदाहरणानि- (माणिक्यामलनीलमौक्तिकमितिः पञ्चाष्टसत क्रमा- देवस्थान्यतरस्य सप्त नव षट् संख्या सखे । रूपाणां नवतिद्विषष्टिरनयोस्तौ तुल्यवित्तौ तथा बीजज्ञ प्रतिरत्नजातिसुमते मूल्यानि शीघ्रं वद || ) अत्र माणिक्यादीनां मूल्यानि यावत्तावृद्धीनि दा प्रकल्प्य तद्गुणरत्वसंख्यां च रूपाणि च प्रक्षिप्य सम- शोधनार्थं न्यासः | 13. S