पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३२३

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बीजगणित- शल्यं षड्भिरथेषुभिस्त्रिभिरपिच्छ ध्वजं कार्मुकं चिच्छेदास्य शिरःशरेण कतितेयानर्जुनःसंदधे६३|| अत्र बाणसंख्या याव १ | अ मूलानि या ४ व्यक्तमार्गणगणं रू १० एषामैक्य मस्य याव १ समं कृत्वा लब्धयावत्तावन्मानेन १० उत्थापिता जाता बाणसंख्या १०० । याव ३ । दाहरणान्तरं शार्दूलविक्रीडितेना- पार्थ इति । व्याख्या तोत्र्यं लीलावतीविवृतौ । उदाहरण--- कर्ण के मारने के वास्ते अर्जुन ने जो बाण लिये थे उनके आधे से कर्ण के बाणों को रोका और उन बाणों के चौगुने मूलसे उसके घोड़ों को रोका, छ बाण से शल्यनामक सारथि को आच्छादित किया, तीन बाणों से छत्र, ध्वज और धनुष को काटा, एक बाण से कर्ण का शिर काटा, तो को अर्जुन के पास कितने बाण थे । यहां बाणसंख्या याव १ कल्पना की, इसका आय हुआ, राशि का मूल चतुर्मुख या ४ हुआ, दृश्य १० है, इनका योग हुआ यह राशि ' याव १ , समान है इसलिये याव १ मा ८ रु २० २ समीकरण के अर्थ न्यास याव १ या ८ रु २० २ याव १ समच्छेद और छेदगम करने से याव १ या ८ रु ९० याव २ या ० रू०