पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३१६

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

एकवर्णमध्यमाहरणम् | ३०६ अव्यक्तमान धनगत होगा । इसीभांति व्यक्तपक्षीय मूल के रूप को ऋण गत मानने से उसका अव्यक्तपक्षीय मूल के धनगत रूपके साथ अन्तर करने से शेष वनही रहेगा इसप्रकार अव्यक्तराशि का व्यक्तमान द्विविध होता है। अब पक्षों को अव्यक्वर्गक से गुण देने से लेंगे उन & तो अव्यक्त वर्गस्थान में अव्यक्तवर्गाङ्क ही होगा, फिर पक्षों में अव्यक्त के आधे के वर्ग को जोड़कर उसका मूल लेंगे तो व्यक्तपक्षीय रूपस्थान में अव्यक्ताङ्का होगा, बाद ' कृतिभ्य आदाय पदानि तेषां योद्वयोश्चा- भिहर्ति द्विनिघ्नीं शेषात्यज्येत्' इस सूत्र के अनुसार व्यक्तवर्गक और इनका वात दूना मध्यम खण्ड तुल्य होगा क्योंकि पहिले अव्यक्ताङ्क और अव्यक्तवर्गक इनका घात मध्यम खण्ड के तुल्य होता रहा, इस भांति पहिले पक्ष के मूल मिलने से दूसरे का भी मूल मिलेगा परंतु जिस स्थान में अञ्याङ्क दो, चार, छः आठ इत्यादि समाङ्करूप होगा वहां उसका अर्थ होगा और जहां विषमाङ्क रूप होगा उस स्थान में अर्ध भिन्नाङ्क होगा इसलिये उपायान्तर करना चाहिये वहां श्रीधराचार्य के सूत्र के अनुसार चतुर्गुण अव्यक्तवर्गक से दोनों पक्षों को गुणकर व्यक्त वर्गस्थान में मूल लेने से अवर्गक दूना होता है और रूप स्थान में अव्यक्ताङ्कवर्ग को जोड़ देने से उसका मूल अव्यक्ताक के तुल्य आता है, अब उसके और द्विगुण अव्यक्तवर्गाक के घात को दूनाकरते हैं तो चतु- गुणित अव्यक्तवर्गाङ्क से गुणा हुआ अव्यक्ताङ्क मध्यम खण्डरूप होता है. उसके त्याग करने से शून्य शेष रहता है इस भांति अव्यक्त पक्ष मूल मिलने से व्यक्तपक्ष का भी मूल मिलेगा क्योंकि दोनों पक्ष तुल्य हैं इस से श्रीधराचार्य का भी सूत्र उपपन्न हुआ। अत्र श्रीधराचार्यसूत्रम्- 'चतुराहतवर्गसमै रूपैः पक्षद्वयं गुणयेत् |