पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३०७

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बीजवलिते- जातैवं समता तयोयदि गताबुड्डीनमान किय- द्विदंश्चेत् सुपरिश्रमोऽस्तिगणितेक्षिमंतदाचक्ष्व मे ५७ अत्र समगतिः ३०० । उड्डीनमानं यावत्तावत् १ एतद्युतो वृक्षोच्छ्रायः कोटिः । यावत्तावदूना समगतिः -कर्णः। तरुवाप्यन्तरं भुजः । अजकोटिवर्गैक्यं कर्णसमं 1 या १ JAROS २०० कृत्वा लब्धमुड्डीनमानम् ५० ॥ अथान्यदाहरणं शार्दूलविक्रीडितेनाह-वृक्षादिति | परः क पिमार्तिकचित्योड्डीय श्रुतीमगादिति योजनीयम् । 'श्रुति- पथात् ' इति स्यक्लोषे पञ्चमी । श्रुतिषमाश्रित्येति तदर्थः । अत वृक्ष ' इति पई तालादिसरलटक्षपरकम्, अन्यथा ऋजुवामा वात्तादृशोदाहरणासिद्धिः । व्याख्यातोऽपि लीलावतीव्याख्याने ॥ उदाहरण--- सौ हाथ ऊंचे ताल वृक्षपर दो वानर बैठे थे, उनमें से एक बानर उतर कर उस वृक्ष के मूल से दोसौ हाथ फ़ासिले पर एक बावली श्री उसको गया और दूसरा बानर उलकर कमार्ग से उस बावली को गया इसभांति दोनों को तुल्य जानापड़ा तो बतलाव ( वानर ) जितना उछल कर गया होगा | यहाँ समगति ३०० हाथ है। उलने का मान यावत्तावत् १ कल्पना दिया और उसमें वृक्षकी ऊँचाई १०० जोड़ देने से कोटि या १ रु १००