पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/३०४

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

एकवर्णसमीकरणम् । २०७ रु २५६ कर्णवर्गस्यास्य याव १ या ६४ रू १०२४ सम इति समवर्गगमे माग्वदाशयावत्तावन्मानेन १२ उत्थापितौ कोटिकर्णो १२ | २० | एवं भुजकोटियु- तावपि || अथ भुजे कोटिकर्णयोगे चं ज्ञाते तयोः पृथकरणं दर्शयितुमु दाहरणं मालिन्याह-पदीति | स्पायपि व्याख्यातोत्र्य लीला- वतीव्याख्याने || उदाहरण- • एक समान भूतलपर बत्तीस हाथ लम्बा बाँस था वह वायुवेग से एक स्थान से टूटकर मूल से सोलह हाथपर जा लगा तो बतलाओ वह बाँस मूल से कितने हाथ पर टूटा । यहां बाँस का निचलाखण्ड कोटि है. उनका मान यावत्तावत् कल्पना किया या १ इसको बाँस के मान ३२ में घटादेने से बाँस का उपरला खण्ड क या रू. ३२ हुआ, मूल और व्यग्र का अन्तर भुज रु १६ और कोटि का योग याब १ रु २५६ हुआ, यह कवर्ग यात्र १ या ६४ रु १०२४ के समान है इसलिये समीकरण के हैं अर्थ न्यास | याच १ मा० ल २५६ यात्र १ या ६४ रु १०२४ 8 समशोधन करने से यावत्तावत् का मान १२ आया, यही कोटि का प्रमाण है । उसको बाँसके मान ३२ में घटा देने से कमान २० हुआ, यही बाँस का उपरला खण्ड था । इसीभांति कोटि और सुजकर्ता का योग जानकर उनको अलग करना