पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२९९

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२६२ बीजगणिते- मूलं याघ ३ । ननु यावत्तावदर्गधनोऽयं राशिर्न घनवर्गः कथमस्य घनात्मकं मूलमिति चेदुच्यते- यावानेव घनवर्गस्तावानेव वर्गघनः स्यादित्यत एव द्विगतचतुर्गतषड्गताष्टगता वर्गाः स्युः । एषामेक- द्वित्रिचतुर्गतानि मूलानि यथाक्रमं स्युः । एवं त्रिप रणवगता घना एकद्वित्रिगतानि तेषां मूलानि । एवं सर्वत्र ज्ञातव्यम् । अथ राश्योर्वर्गयोगः यावव ५ अयं घन इतीष्टयावत्तावत्पञ्चघनसमंकृत्वा पक्षौ यावत्तावद्- घनेनापवर्त्य प्राग्वजातौ राशी ६२५ | १२५० । एव- मव्यक्कापवर्तनं यथा संभवति तथा चिन्त्यम् || उदाहरण-- वे दो राशि कौनसे हैं जिनका धनयोग वर्ग और वर्गयोगघन होता है । यहांपर दो राशि ऐसे कल्पना किये जिनमें एक स्वतः घटित होता है या १ या २ अब उनका धनयोग यावघ ६ हुआ, यह स्वयं वर्ग है क्योंकि इसका वर्गमूल याघ ३ है। , यह शङ्का — 'घाबघ ६' इस यावत्तावत् वर्ग घन का मूल ' याघ ३ यावत्तावत् घन नहीं हो सक्ता क्योंकि वर्ग का वर्गमूल और धन का घन- मूलही आना उचित है इसलिये प्रकृत में घन का वर्गमूल जो लिया है सो ठीक नहीं है । समाधान - जो धन का वर्ग होता है वही वर्ग का वन हैं । जैसा- दो स्थानगत समाङ्कघात वर्ग होता है। चार स्थानगत सात वर्गवर्ग होता है वह भी वर्गात्मक है । इसीभांति व स्थानगत समाङ्कघात वर्गवर्ग.