पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२२४

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चक्रवालम् । अथवा प्रकृतिसमक्षेप उदाहरणम्- त्रयोदशगुणो वर्गस्त्रयोदशविवर्जितः । त्रयोदशयुतो वा स्याद्वर्ग एवं निगद्यताम् ||३३|| प्रथमोदाहरणे प्रकृतिः १३ । जाते कनिष्ठज्येष्ठ १०।० अत्र 'इष्टवर्गप्रकृत्योर्यदिवरं-' इत्यादिना रूपक्षेप- मूले ३१ आभ्यां भावनया त्रयोदशऋणक्षेप- मूले ११35, वा एषामृणक्षेपपदानां रूपशुद्धिपदा- भ्या३३ माभ्यां विश्लिष्यमाणभावनया त्रयोदश- क्षेपमूले वा १८ । ६५ । २ प्रकृतिसमक्षेप में उदाहरण-- २१७ वह कौन सा वर्ग है जिसको तेरह से गुणकर उसमें तेरह वटा वा जोड़ देते हैं तो वर्ग ही रहता है । यहां प्रकृति १३ है, कनिष्ठ १ कल्पना किया इसके वर्ग १ को प्रकृति १३ से गुण कर उसमें १३ घटादिया तो • शून्य शेष बचा इसका मूल १० ज्येष्ठ पद हुआ इनका यथाक्रमन्यास | क १ अये० क्षे १३ इसभांति जिस स्थान में प्रकृति के समान ॠण क्षेप होने वहाँ पर १ इंट कल्पना करके ज्येष्ठपद सिद्ध करना चाहिये यह युक्ति निक- लती हैं क्योंकि एक कनिष्ठ कल्पना करने से जब उसके वर्ग को प्र कृति से गुण देंगे तब वह ( गुणनफलरूप प्रकृतिगुणित कनिष्ठका वर्ग ) प्रकृति के तुल्यही रहेगा और वहां क्षेप को भी प्रकृति के तुल्य होनेसे जब उसे प्रकृति में घटावेंगे तो शून्य शेष बचैगा और उसका मूल ज्येष्ठ शून्य आवेगा, जैसा------ " क १ ज्ये० क्षे ,