पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/२०१

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बीजगणिते- इस का मूल ज्येष्ठ है प्र. क ज्ये १ क्ष १ इससे 'इष्ट गुणित ज्येष्ठ से युक्त और क्षेपसे भक्त प्रकृति गुणित कमिष्ठ होता है। यह बात सिद्ध होती है । और क्षेप के प्र. इव. कव १ प्र. क्षे १ इव. ज्येव १ क्षेत्र १. पहिले तथा तीसरे खण्डमें इष्टवर्ग का भागदेने से प्र.कब १ ज्येव १ 1 यह क्षेपहुआ क्योंकि ज्येष्ठ वर्ग में प्रकृतिगुणित कनिष्ठवर्ग को घटा देने से शेष रहता है | प्रव, कव १प्र.इ.क.ज्ये २ इव, ज्येव १ क्षव १ प्र. इथ. कव१प्र.इ.क. ज्ये२प्रव. कव १ प्र.क्षे १ क्षेष १ प्र. इव, कव१ इव. ज्येव १ प्र.क्षेरं क्षेप को इष्टवर्ग से गुण देना चाहिये क्योंकि पहिले इससे भागागया था इसभांति क्षेप का स्वरूप निष्पन्न हुआ प्र.क्षे१ इव.क्षे१ क्षेत्र १ प्र.रं इव १ प्र.१ इष १ । bet उदाहरणम्- का सप्तषष्टिगुणिता का चैकषष्टिनिहता च सखे सरूपा । कृतिरेकयुक्ता