पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१५४

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१४७ न्यासः । भाज्यः ५ । हार: १३ | क्षेपः ० । क्षेपाभावे गुणाप्ती: एवं पञ्चषष्टिक्षेपेवा इत्यादि । ‘ क्षेपाभावोऽथ वा यत्र क्षेपः शुध्येद्धरोद्धतः' इन दोनों बातों के दिख- लाने के लिये उदाहरण-- ऐसा कौन गुण है जिससे पांच को गुणकर उसमें शून्य अथवा पैंसठ जोड़ देते हैं और तेरह का भाग देते हैं तो निरग्र होता है | दोनों उदाहरण केन्यास | भाज्य= |क्षेप = ० [वा, भाज्य = ५ । क्षेप=६ ५ हार == १३ ।। हार = १३ । यहां पहिले उदाहरण में क्षेप का अभाव है और दूसरे में क्षेप ६५ हार १३ का भाग देने से शुद्ध होता है इसलिये दोनों स्थान में शून्यही गुण हुआ और क्षेत्र में हार का भाग देने से ०, ५ फल हुआ इस भांति लब्धि गुण सिद्ध हुए : 1 और 'इष्टाहतस्वस्त्रहण --' इस सूत्र के अनुसार १ इष्ट मानने से लब्धि गुण हुए १३ । १६ । इस भांति इष्ट कल्पना करने से अनन्त लब्धि गुण होंगे || अथ स्थिरकुट्टके सूत्रं वृत्तम्- क्षेपं विशुद्धिं परिकल्प्य रूपं पृथक्कयोयें गुणकारलब्धी ॥ ३६ ॥ अभीप्सितक्षेपविशुद्धिनिघ्ने स्वहारतष्टे भवतस्तयोस्ते । अथ ग्रहगणिते विशेषोपयुक्तं स्थिरकुट्टकमुपजातिकोत्तर. पूर्वार्धाभ्यामाह- क्षेपमिति । क्षेपं घनक्षेपं त्रिशुद्धिमृणक्षेपं रूपं परिकल्प्य तबोर्धनक्षेपयोः पृथक् ये गुणकारलब्धी स्यातां ते