पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/१५२

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W कुटुकः । १४५ लब्ध्यर्थं द्विगुणे हरे क्षिप्ते जातो तावेव लब्धिगुणौ ४ 'अथवा भागहारेण तष्टयोः-' इति न्यासः भा. राक्षे २ · हा. ३ । जातं राशियम क्षणाजातं ३ अत्रापि जातः पूर्व एव गुणः २ लब्धिस्तु 'भाज्याद्धतयुतोद्ध- तात्' इति गुण २ गुणितो भाज्य: १० क्षेप २३ युतो ३३ हर ३ भक्को लब्धिः सैव ११ ॥ अब 'गुणलब्ध्योः समं ग्राह्यम् - ' "' हरतष्टे धनक्षेपे-' अथवा भागहारेण तष्टयो:--' इन सूत्रों की व्याप्ति दिखलाने के लिये उदाहरण वह कौन सा गुण है जिससे पांच को गुण देते हैं और उस गुणनफल में तेईस जोड़ वा घटा देते हैं फिर तीनका भाग देते हैं तो निरग्र होता है | न्यास | भाज्य= ५ | हार = ३ | क्षेप = २३ | उक्त रीति से वल्ली १ २३ : उक्त रीति से दो राशियहां तक्षण करने में नीचले राशि से सात ७ मिलते हैं और ऊपर के राशि से नौ ९, परंतु नौ २ नहीं लेना चाहिये किन्तु ' गुणलब्ध्यो: समं ग्राह्यं धीमता फलम् ' इस सूत्रके अनुसार सात ७ ही लेना उचित है। इस भांति '१' लब्धि गुण हुए, ये योगज हैं इस कारण ये अपने अपने क्षणों में शुद्ध करनेसे वियोगज हुए; यहां यदि धन लब्धि की इच्छा हुई तो ' इष्टाहृतस्वस्वहरेण -' इस सूत्रके अनुसार दो इष्ट मानने से लब्धि गुण हुए ? इसप्रकार यदि इष्ट हो तो वन लब्धि सिद्ध करलेनी ||