पृष्ठम्:बीजगणितम्.pdf/११५

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१०८ बीजगणिते - तेषां फलानां वल्लीवदधोधः स्थापितानामधोभागे क्षेपो निवेश्य- स्तथा तेषामप्यधोऽन्ते खं निवेश्यम्, एवं वल्ली जायते । तत उपा- न्तिमेनाङ्केन स्वोर्ध्वे स्वोर्ध्वस्थितेऽङ्के हते अन्त्येनाङ्केन युते च सति तदन्त्यै त्यजेत् इति मुहुः । उपान्तिमेन स्वोर्चे हतेऽन्त्येन युते तदन्त्यं त्यजेत्, इति पुनः पुनः कृते राशियुग्मं स्यात् । तत्रोर्ध्व- राशिईटेन विभाज्येन तष्टः सन् फलं भवेत् । फलं नाम लब्धिः | रोज्यस्तो राशि हरेण तष्टः सन् गुणः स्यात् । तक्षू त्वक्षू तनूकरणे, इति धातोः कर्मणि क्लः | तष्टस्तनूकृतोऽवशेषत इति यावत् । अत्र 'तष्ट: ' इत्यनेन भक्तांवशेषितो राशिग्रह्यो नतु लब्धिरित्यर्थः । तेन गुणेन दृढभाज्ये गुणिते दृढक्षेपयुतोने दृढहरेण भक्ते शेषं न स्यादिति | उद्दिष्टेष्वपि भाज्यहारक्षेपेषु ते एव गुण- लब्धी स्त इत्यर्थसिद्धमविशेषात् || अपवर्तनाङ्क और दृढ भाज्य हार क्षेप के जानने का प्रकार -- • उद्दिष्ट दो राशियों के आपस में भाग देनेसे जो शेष बचै वह उनका अपवर्तनाक होगा अर्थात् उससे वे दोनों राशि नि:शेष भागे जांयगे, तात्पर्य यह है कि भाज्य में हरका भाग देनेसे जो शेष बचै उसका हरमें भाग दो और उस हरशेषका भाज्यशेष में भागदो, इसभांति बार बार क्रिया करनेसे अन्त में जो रूप शेष रहै उससे वे भाज्य हार और क्षेप ही रहेंगे अर्थात् छोटे न होंगे । यदि शून्य शेष बचै तो भाजक रूप भाज्य के नीचे स्थापित किया हुआ पहिला शेषही उनका अपवर्त नाङ्क होगा, इसप्रकार ज्ञात हुआ जो अपवर्तन का न दिये हुए भाज्य हार और क्षेप दृढसंज्ञक कहलाते हैं। और उन दृढ़संज्ञक भाज्यहारों को परस्पर तबतक भागते जाओ जबतक कि भाज्य के स्थान में रूप न होजावे इस भांति जो लब्धि मिलें उन्हें एकके नीचे एक इस क्रमसे लिखो और उन लब्धियों के नीचे क्षेपको लिखकर शून्य लिखो, यों