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पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/५५

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8 ] धम्मपद [ ७६ अनुवाद-टिबे आस्रव (=अछ) क्षीण हो गये, जो शहरों पर न तंत्र नहीं, जो शून्यता रूप० । आवस्ती (पूर्वोरास ) ६४-यस्सिन्द्रियाणि समर्थ गतानि, आस्सा यथा सारथिना सुदन्ता । पहीनमानस्स अनासवस्र, देवापि तस्स फ्हियन्ति तादिनो ॥५॥ (यस्येन्द्रियाणि शमतां गतानि अश्वा यथा सारथिना सुदान्ताः । प्रहीणमनस्य अननवस्य वैघा अपि तस्य स्पृहयन्ति तादृशः ॥५॥ अनुवाद-फारशीद्वारा सुखान्त सुशिक्षित ) अश्वोंकी भाँति जिसकी इन्द्रियाँ शान्त हैं, जिसका अभिमान नष्ट हो गया, ( और ) जो आतंबरहित , ऐसे ठस (पुरुष )की दैवता भी स्पृह्य करते हैं। खेळवन सारिपुत (येर ) e५–पठवीसमो नो विलन्तति इन्दखीतूपमो ताटि सुब्बतो । रहते 'ध अपेतकद्दमो संसारा न भवन्ति ताटिनो ॥६॥