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३८] धम्मपद्म [ ३१ (यथापि इवो गम्भीरो विप्रसोऽनाविलाः । एवं धर्मात् श्रुत्वा विप्रसीदन्ति पण्डिताः ) अनुवाद-धमको सुनकर पणित ( बन ) अथार्ह, स्वच्छ निगंठ सरोवस्की भाँति स्त्रच्छ ( सन्तुष्ट ) होते हैं । पाँच सौ भिक्षु ८३-सम्बत्य वे सम्युरिसा वनन्ति न कामकामा लपयन्ति सन्तो । सुखेन भृशा अपना दुखेन न उच्चावचं पण्डिता दस्सयन्ति । ( सर्वत्र वै सत्पुरुषा व्रजन्ति न कामकामा छपन्ति सन्तः । सुखेन स्पृष्टाअथवा दुःखेन नोच्चावचंपण्डितादर्शयन्ति॥८॥ अनुवाद-पुरुष सामी बगह जाते हैं, ( वह ) भोगोके लिए यात नहीं खाते; सुक्ष मिले था दुःख, षडित ( जन ) विकार महीं प्रदर्शन करते । चतवन भन्मिक (थर) ८४-न अत्तहेतू न परस्स हेतु न पुत्तमिच्छे न धनं न रखें। न इच्छेय्य अधम्मेन समिद्धिमत्तनो सीला पब्च धम्मिको सिया ॥३॥