सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/४५

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

३७ ॥ धम्मपदं [५१६ (चाहता है ), अठो ( और निवासो ) में स्वामीपन (=ऍड्वर्षे ) और दूसरे कुछमें ला ( चाहता है )। शूद्दल और संन्यासी वोन मेरे ही क्रियेको सा, किसी भी कृप्य अकृस्यमे मेरे ही वशवर्ती हो--पैसा सूखका सकवष होता , ( जिससे उसकी ) इच्छा और अभिमान बढ़ते हैं । आरती ( जैतवन) ( वनवासी ) तिस्स ( धेर) ७१-अब्बा हि लाभूपनिस अब्बा निब्बानशामिनी । एवमेतं अभिनय भिक्खु बुद्धस्स सावको ॥ सकारं नाभिनन्द्य वैिकमन्ये ॥ १६॥ (अन्या हि लाभोपनिषद् कन्या निर्वाणगामिनी । एवमेतद् अभिशाय भिक्षुर्युद्धस्य भाषकः । सत्कारं नाभिनन्देत् विवेकमनुब्रूहयेत् ॥१२) अनुवाद-शभका रास्ता दूसरा है, और निर्माणको छैजानेवा दूसरा=बूस प्रकार इसे नकार हुङका अनुगासी मिश्च सकारका अभिनन्दन .व करे, और विवेक (=एकान्तचर्चा) को बढ़ावे । ५–बालबर्ग समाप्त