पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/४०

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que ] बाछत्रगो [ २९ अनुवाद-यदि विचरण करते अपने गुरूप भीममुपको न पाये तो इताके साथ अकेला ही विचरे, सूखासै भिन्नता नहीं निभ सकती । आवस्ती आनन्द ( सैठ ) ६y¥Qता प्र' त्थि धनम्मोस्थि इति बालो विह्वलति । अत्ता हि अत्तनो नल्यि कुतो पुतो कुतो धनं ॥३॥ (पुजा मे सन्ति धनं मे ऽस्ति इति बाल विहन्यते । आत्मा हि आत्मनो नास्ति कुतः पुत्रः कुतो धनम् ॥श ) अनुवाद-पुत्र मैरा है, "धन मैरा है” पैसा (फरी ) कुछ ( नर ) बतपीटित होता t है, जब आमा ( = शरीर ) ही अपना वहीं, तो कहाँले पुत्र और धन (अपना होगा ) । D 9 गिरइकट चोर १ ३-यो चालो भब्लती आल्यं पण्डितो चापि तेन सो । बालो च पण्डितमानी, स वे बालति ब्रुवति ॥४॥ ( यो बालो मन्यते थाल्यं पण्डितश्चापि तेन स । बालश्च पंडितमानी स , वै बाळ इत्युच्यते ॥श्व ) अनुवाद—जो ( कि वह ) आज्ञ होकर ( अपनी ) अशतको जानता हैइख (अं) से वह चंडित (= जानकार ) है । वस्तुतः अश होकर भी ओ पंडित होनेका इस भरता है, वही अछ (=क ) कहा जाता है ।