१८० ॥ धम्मपदं [ २२५ (निधाय दण्डं भूतेषु जडेषु स्थावरेषु च । यो न हन्ति न घातयति तमहं ब्रवीमि शाह णम् ॥२३) अनुवाद-चर-अचर (सभी ) शाणियोमें प्रहारविरत हो, जो न आरता है, न मारनेकी प्रेरणा करता न है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हैं। जैतवन चार आमोर ४०६-श्रविरुद्धं विरुद्धेषु अत्तदाण्डेषु निवृतं । सादानेषु अनादानं तमहं बूमि ब्राह्मणं ॥२४॥ (अविरुद्धं विरूद्धेषु, आलण्डेषु निवृचम् । सादानेष्वनादानं तमहं ब्रवीमि ब्राह्मणम् ॥२) अनुवादञ्चो विरोधियोंके बीच विरोधरहित रहता है, जो दंड धारियोंके बीच (दण्ड-)रहित है, प्राहियोंमें जो सप्रहरहित है, उसे मैं ग्राह्मण कहता हैं। राजगृह ( वेणुवम ) भशपन्वक (थेर) ४०७यस रागो च दोसो च मानो भक्खो च पातितो । सासपोरिव आरगा तमहं बूमि बाह्मणं ॥२५॥ (यस्य रागश्च द्वेषश्च मानो प्रदश्च पातितः। सर्यप इवाऽऽरागाद तमहं ब्रवीमि ब्राह्मणम् ॥५) अनुनाद आरेके पर सरसोफी मोति, जिसके (बिससे) राग, , सान, मॅक दिये गये हैं, उसे मैं अझण कर्ता हैं।
पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१९१
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