१३ ६ ॥ यसकन्नगो रथगृह (वेणुबन ) चुन्द्र ( करेिक ) १५-३ सोचति पैच सोचति पापकारी उभयत्य सोचति । सो सोचति । सो विहघ्लति द्विस्वा कम्मकिलिमत्तनो ॥ १५॥ (इह शोचति प्रेस्य शोचति पापकारी उभयत्रचति। स शोचति स विहन्यते दृष्ट्वा कर्म क्लिष्टमात्मनः ॥१५) अनुवाद-पर्ल (इख छौमें ) शौक करता है, मरनेके धावू शक करता है, पाप करनेवाला दोनों ( छोक ) में शोक करता है। वह अपने मलित ऑको देखकर शोक करता है, पीड़ित होता है । आस्ती ( बेतवन ) थम्भिक ( उपासक ) १६-इंध मोति पेच्च मोदति कतमुक्तं उभयत्य मोदति । सो मोदति । सो पमोदति दिवा कम्मविशुद्धिम्तनो ॥ १६॥ (इह मोदते प्रेक्ष्य मोदते कृतपुण्य उभयत्र मोदते । स मोदते स प्रमोदते दृष्ट्वा कर्मविशुद्धिमात्मनः ॥१६) अनुवाद-- यहाँ अयुषित होता है, मरनेके वाड् अनुदित होता है, बिखने पुण्य क्रिया है, यह दोनों ही जगह अनुदित होता, है। वह अपने कमकी शुद्धताको देखकर ध्रुवित होता है, अनुवित होता है।
पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१८
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