पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१६१

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०५० ॥ धम्मपत्रे [ २०१ अनुवाद-—से जमकै ल और म की होनैपर क्या हुआ भी पूरे फिर उग आता है, इसी प्रकार तृष्णारूपी अनुसार (= अरु ) के न मg नैपरयह दु फिर फिर पैर होता है । ३ ३६-स्स छतिंसती सोता मनापासवना मुसा। थाहा वहन्ति दुद्दिष्टं सकम्पा रागनिम्सिता ॥१॥ ( यस्य पत्रंशत् श्रोतांसि मनापश्रयणानि भूयासु । यादो यन्ति दुष्टgि संकल् गगनष्ठताः ॥ ६ ॥ अग्नगद–जिसने, मतीस यौन मनरो अपनी प्रणाली (श्री) को ही आनैयाले हे, ( उपके लिए ) शणप्ति मथस्प स्पी थाहुन पुरी धारणाओफ पाहन करते हैं। ३४०-मति मन्यघि मोना लना उभिन्य तिति । तत्रच श्रिया। लतं जानं मूलं पलए भिन्न ॥ १॥ (नाम्नि प्रयतः श्रोतांसि लग उशि पि। ग ध ना ढगां जातं , मुद्रं प्रश्ण दिन ' ) गुद-- यe ) गण ॥ । ४५ " घरों ५, ( fभः । ( का की *** नहीं थे, ए