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१४४ ] धम्मपत्रे [ २३५ अनुवाद---यह ( मेरा ) चितल पहिले यथेच्छ=यथाकामजैसे सुष मालूम हुआ बैठे विचरनेवाला था; सो आज महावत जैसे मतानुष्ठे हाथीको ( पकड़ता है, वैसे ) मैं इसे जड्से पकड़ेगा। तवन कौसळराजका पावेप्यक नामक हाथी १२७-अष्पमादरता हेय सचित्तमतुखखष । दुगा उद्धरय'तानं पदं सतो व कुञ्जरो ॥८॥ (अममाद्रता भवत एवचित्तमनुक्षत । दुर्गादुद्धरताऽऽत्मानंपैके सक्क इव कुंजरः ॥८) अनुवाद-अप्रसाद (=सावधानता )में रत होओ, अपने सनकी रक्षा करो, पंक फंसे हाथीकी तरह (राग आदोिन हँसे) अपने को अपर निकाछ । बहुतने निष्ठ '३२८–सचे लभेथ निपकं सहयं सद्धिं चरं साधुविहरिषीरं । अमिभुय्य सन्यानि परिस्सयानि चरेय्य तेन’तमनो सतीमा ॥३॥ (ख चेत् लभेत निपक सहायं साई चरन्तं साधुविहारिणं धीरम् । अभिभूय सर्वान् परिस्थयान चरेत् तेनऽऽत्मनः स्मृतिमान् ।। )