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पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१३६

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२०९ ॥ भावग्ग [ १२५ ) ( उत्थानकालेऽनुतिष्ठन् युवा बळी आलस्यमुपेतः। संसान्न-संकल्प-अनः कुसीद् प्रज्ञया मार्ग' अलक्षो न विन्दति ॥ ८ ॥ अनुवाद—जो उद्धम ( =उद्योग के समय उद्यान न करनेवाला, युवा और बाली होकर ( भी ) आछयले युक्त होता है, मनके संक्रुपको घिसने गिरा दिया है, और जो कुसीदी (=दीर्घसूत्री ) है, वह आछसी ( पुरुष ) शके मागेको नहं स कर सकता । राणचूह ( वेणुबन ) ( शैत ) २८१-वाचानुरक्खी मनसा सुसंवृतो कायेन च अकुसलं न कयिरा । एते तयो कमपथे विमोघये आराधये मग्गमिसिप्पवेदितं ॥s॥ (घाचाऽनुशी मनसा सुसंकृतः कायेन चाऽकुशलं न कुर्यात् । एतान् त्रीन् कनैपथान् विशोधयेत्, आयधयेत् मार्गी ' अधिश्रवेदितम् ॥ ९ ॥ ) अनुवाद---ओ वणीकी रक्षा करनेवाला, सनसे संयमी रहे, तथा कायासे पाप न करे, इन ( मन, वचन, काय ) तीनों कर्मेषयोंकी वृद्धि करे, और कवि =मुड )के जतछायै धर्मका सेवन करे।