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पृष्ठम्:धम्मपद (पाली-संस्कृतम्-हिन्दी).djvu/१३१

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१३० ॥ धक्षपद [ ११७ अनुवाद--अविद्वान् और समान (पुरुप, सिर्फ ) मौन होने सुनि नहीं होता, जो पंडित कि तुळाकी भाँति पकड़क, उत्तम (तव ) को ग्रहण कर, पापों परित्याग करता , यह सुनेि है, और एक प्रकारले सुनि होता है। चूंकि यह दोनों लोकोंका मनन करता है, इसलिये यह भुवि कहा जाता है । अरिय बाळिसिक २७०-न तेन अरियो होति येन पाणानि हिंसति । अहिंसा सत्रपाणानं अरियो' ति पृथुचति ॥१५॥ (न तेनाऽऽयं भवति येन प्राणान् हिनस्ति । अहिंसया सर्वप्राणानां आर्य इति प्रोच्यते ॥१५ ) अनुवाद-प्राणियोको हनन फरनेसे (कोई ) आयें गहीं होता, सभी प्राणियोंकी हिंसा न करनेसे ( बसे ) आर्य कहा जाता है । लेतवन बहुतसे शकआदिशूक मिझ २७१–न सीलबतमतेन बाहुसन्चेन पन । वा अयत्रा समाधिलाभेन विविचसयनेन वा ॥ १६॥ (न शीलव्रतमात्रेण वाहुभृत्येन वा पुनः। अथवा समाधिलाभेन विचिच्य शयनेन घा १३) २७२-फुसामि नेखम्ममुखं अपृथुज्जनसेवित । भिक्खु I विसासमपादि अष्पत्तो आसवक्खयं ॥१७॥