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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२७४

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ताजिकनीलकण्ठी । अल्पवृष्टिःपापदृष्टेप्रावृट्कालेविशेषतः चंद्रवद्भार्गवेसर्वमेवंविधगुणान्विते ॥ २१ ॥ ॥ उक्त चंद्रमापर पापदृष्टिभी हो तो अल्पवृष्टि होवें वर्षाकालमें यह योग हो तो बहुत दिनोंमें वृष्टि होवे ऐसेही शुक्र से भी जानना ॥ २१ ॥ प्रावृषदुःसितात्सप्तराशिगःशुभवीक्षितः ॥ मंदाति कोणसप्तस्थोयदिवावृष्टिकृद्भवेत् ॥ २२ ॥ वर्षाकालमें चंद्रमा शुक्से सप्तम में शुभदृष्ट हो अथवा शनिसे त्रिकोण वा सप्तम हो तो वर्षा शीघ्र होवे ॥ २२ ॥ (२६६) सद्योवृष्टिकरःशुक्रोयदाबुधसमीपगः ॥ योर्मध्यगतेभानौतदावृष्टिविनाशनम् ॥ २३ ॥ जो शुक्र बुधके समीप हो तो तत्काल वृष्टि करे जो बुध शुक्रके बीच सूपं हो तो वर्षाका नाश होवे ॥ २३ ॥ मघादिपंचधिष्ण्यस्थःपूर्वेस्वातिपरत्रये ॥ प्रवर्षणंभृगुः कुर्य्याद्विपरीतनवर्षणम् ॥ २४ ॥ पूर्वोदयी शुक्र मघादि पांच नक्षत्रों में एक नक्षत्रसे दूसरेपर गमन करे तथा पश्चिमोदयी स्वातीसे तीनपर गमन करे तो वर्षा होवे जो ऐसाही वक्रगती करे तो वर्षा न होवे ॥ २४ ॥ पुरतः पृ तोभानोर्ग्रहाय दिसमीपगाः ॥ तदावा प्रकुवैतिनचेत्तेप्रतिलोमगाः ॥ २५ ॥ सूर्यके आगे और पीछे मार्गीग्रह समीपही हों तो वर्षा करते हैं. कोई वक्रीभी हों तो अवर्षण करते हैं ॥ २५ ॥ सौम्यमार्गगतःशुक्रोवृष्टिकृन्नतुयाम्यगः ॥ उदयास्तव: स्याद्भानोरार्द्राप्रवेशने ॥ २६ ॥ सूर्ग्यसे शुक्र उत्तरापथग हो तो वृष्टि; दक्षिणापथग हो तो अनावृष्टि कर ता है तथा शुक्र के उदयास्त एवं आद्रप्रिवेश में भी वर्षा होती है ॥ २६ ॥