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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२४८

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(२४० ) ताजिकनीलकण्ठी । पीडाथवासीत्सुरतेयुक्त्यारजोयथास्तर्क्षमुपैतितद्वत् || लग्नेसुरेज्येभृगुजेकलत्रेतुय्यँहिमांशौसविलासहासः ॥ २६ ॥ जो पापग्रह समम हो तो सुरतमें स्त्री को क्लेश रजोदोषादिपीडासे होवे, लग्नमें बृहस्पति सप्तम शुक्र चतुर्थ चंद्रमा हों तो सुरत विलासहाससे होवे,. जैसा सप्तम स्थानहो उसके अनुसार सुरत कहना ॥ २६ ॥ शुभग्रहोत्थेचकंबूलयोगेयुतोरजःपुष्पसुगंधियुक्तम् || स्वक्षॊच्चगेहर्म्यरतंनिगद्यंस्थितेद्विदेहेवनितास्वकीया ॥ २७ ॥ शुभग्रहों का कंबल योग लग्नेश वा सप्तमेशसे हो तो रजपुष्पकी सुगंधि- "युक्त पाप कंबूलसे दुर्गेधि होगा, उक्त ग्रह स्वराशि वा उच्चमें हो तो अच्छे वरमें अन्यथा सामान्य स्थानमें तथा नीचादिमें होनेसे मार्ग ऊपर कंटकादि- प्राय स्थान में सुरत हो, तथा द्विस्वभाव राशिमें हो तो अपनी स्त्रीसे स्थिर हो तो वेश्यादिसे संभोग कहना ॥ २७ ॥ चरोदयेसारमतेपरस्त्रीकेंद्रेशनौसासरजादिवारतिम् || निशोदयेरात्रिखगेचरात्रौदिवानिशंतद्विदले द्विखेट्योः ॥ २८ ॥ चरराशि लग्नमें हो तो परस्त्री से भोग होवे, शाने केंद्र में हो तो रजोवतीसे होवे, लम दिवाबली हो तो दिनमें रात्रिबली हो तो रात्रिमें और संध्याबली से संध्या कालमें द्विस्वभावसे दिन तथा रात्रिमेंभी सुरत कहना ॥ २८ ॥ . इति श्रीमहीधर नी प्रश्नतंत्रभाषाटीकायां सप्तमभावप्रश्ननिरूपणम् ॥ ७ ॥ अथाष्टमस्थानप्रश्नः । नृपसंग्रामप्रश्नेविलग्नलग्नेशसंस्थितात्खेटात् || • O शशिमूसरिफात्प्रष्टास्तास्त पसंस्थेंदुमुथंशिलाच्छचुः ॥ १ ॥ राजाके संग्रामप्रश्नमें लन तथा लमेश प्राप्तग्रहसे चंद्रमाके मूसरिफादि होने में और सप्तम सप्तमेशके चन्द्र मुथशिलसे शत्रुका जय पराजय कहना लग्न .लग्नेश संबंधी शुभयोग में अपना जय सप्तम सप्तमेश संबंधी से शत्रुजय इत्यादि १ ॥ अथवाशनिकुजजीवाःशीप्रेभ्योबलयुताउपरिचराः || बुधसितचंद्रास्तेभ्यश्चदुर्बलाधश्चराध्वसंचित्याः ॥ २ ॥