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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२३४

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( २२६ ) ताजिकनीलकण्ठी । और विषमक्षै विषमनवांशसंस्थिता गुरुशशांकल कः ॥ पुंजन्मकराः समभेषु योषितां नृराश्यंशाः ॥ २९ ॥ बृहस्पति चन्द्रमा लग्न और सूर्य विषम राशि विषम नवांश में पुत्र समराशि नवांश अर्थात् पुरुषराशि नवांशकोंमें कन्या देते हैं ॥ २९ ॥ इति श्रीमहीघरकृतायां ता नी०मा पञ्चमस्थानमश्चनिरूपणम् ॥ ५ ॥ अथ षष्ठस्थान नः | • O रोगादय, त्थास्यति नवेतिलग्नंभिषग्धूनम् ॥. व्याधिदेशमं रोगीहिवुकंभेषजमिहाद्दुराचार्य्याः ॥ १ ॥ रोगी मनुष्य रोगसे आराम होगा या नहीं, ऐसे प्रश्नमें लग्नसे वैद्य सत रोग दशमसे रोगी चतुर्थसे औषधी आचार्ग्य कहते हैं ॥ १ ॥ ू क्रूरार्दिते विलग्ने वैद्यान्नगुणास्तदौषधाद्रोगः ॥ वृद्धिमुपयाति दशमे क्रूरैर्निजबुद्धितोप्यगुणः ॥ २ ॥ लम पापाक्रांत हो तो वैद्यसे गुण न होवे उसकी औषधिसे रोग बढ़ेगा दुराम में पापग्रह हों तो अपनीही चूक ( गलती ) से रोग बढ़े ॥ २ ॥ अस्तेचक्रूरयुक्ते मांद्यान्मांद्यंतथौषधाद्वंधौ || सौम्योपगतैरे तैररोगिता रोगिणो भवति ॥ ३ ॥ सतममें पाप हों तो रोग में रोग खडा होवे, चतुर्थमें हों तो औषधी से रोग वृद्धि होवे. इन १ । १० । ७ १ ४ स्थानों में शुभग्रह हों वा ये भाव बली हों तो नीरोगता होगी ॥ ३ ॥ लग्नेशेंद्रोः सौम्येत्थशालतो रोगनाशनं वाच्यम् || वक्रेतुतखेटे भूयोपिगदः समुपयाति ॥ ४ ॥ लग्नेश तथा चन्द्रमांका शुभग्रहसे इत्थशाल हो तो रोगनाश होवे ईस- राफ हो वा चक्रगति हो तो फेरफेर रोग उत्पन्न होवै ॥ ४ ॥ भूमिस्थे लग्ननाथेशशिमुथशिले भवेन्मृत् ॥ लग्नस्थेरंध्रपती लग्नपशशिनोर्विनाशेवा ॥ ५ ॥

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लग्नेश चतुर्थ हो चंद्रमाके साथ मुथशिली हो तो मृत्यु होवे, वा लग्नम

अष्टमेश और लग्नेश एवं चन्द्रमा अष्टम हों तौभी मृत्यु होवे ॥ ५ ॥