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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२१३

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(२०५ ) भाषाटीकासमेता । तामान्यभाव विचारे । अनु० - इंदुः सर्वत्रबीजाभो लगं च कसुमप्रभम् || फलेनसदृशोंशश्च भावः स्वादुसमप्रभः ॥ ३५ ॥ यह विचारमें सर्वत्र चंद्रमा बीजके लग्न पुष्पके अंश फलके और भाव- स्वादके समान हैं ॥ ३५ ॥ अथ लाभादौ कालनिर्णयः । · आर्या - उदयोपगतराशिंतत्कालीकृत्यालि कांगुणयेत् ॥ यांगुलञ्चकुर्य्यात्वामुनिभिस्ततः शेषः ॥ ३६ ॥ गणयित्वैवं ग्वद्धृत्वासौम्यस्यभवेदुदयः ॥ कायंप्राप्तिः ए॒वं व्यानेतरै हैर्भवति ॥ ३७ ॥ लाभादि समस्त प्रश्नमें समय जाननेके लिये तत्काल लग्नका लिप्तापिंड करके उस समयमें द्वादशांगुलकी छायाके अंगुलोंसे गुनाकर चौदहसे भाग- देना जो शेष रहै वह मेषादि राशि जाननी, वह जो शुभग्रहकी राशि हो तो कार्य प्राप्ति और पापकी हो तो कार्य्यहानि कहनी ॥ ३६ ॥ ३७ ॥ ग्रहगुणकारोज्ञेयोदेवविदा पंच ५ विंशतिः सैकः २१ ॥ मनवो १४ ङ्का ९ टौ८त्रितयं३भवाः ११ सूर्य्यादितोज्ञेयः॥३८॥ णकारैक्यविभक्तःसूर्य्यादिगुणकसंशुद्धः ॥ यस्यनशद्धयतिवर्गोविळे यस्तद्वशात्कालः ॥ ३९ ॥ सूर्यके ५ चंद्र २१ मं० १४बु० ९ बृ० ८ शु० ३शनिके ११ये ग्रहोंके गुणक हैं इनका योग ७१ से पूर्वोक्त जो तत्काल लनका कलापिंड छायाँ - गुलोंसे गुणा है उसमें भागलेना लब्धिमें सूर्य्यादिकोंके गुण एकएक करके घटाबै जहांतक घरें घटातेजाना जिसका गुणकांक न घंटे उससे समय कहना वह आगे कहते हैं ॥ ३८ ॥ ३९ ॥ आरदिवाकरशेषेदिवसापक्षाञ्चभृगुशशिनोः ॥ गुर्ववशेषे मासो ऋतवः सौम्येशनैश्चरेब्दाः स्युः ॥ ४० ॥ आधाथप्राप्तौगमनागमने पराजये विजये | रिपुनाशेवाकालं यां निश्चितंत्र्यात् ॥ ४१ ॥ उक्त क्रमसे, जो सूर्य्य वा मंगलका गुणक न घंटे तो उतने दिन, शुक्र •